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पाण्डवपुराण
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चार चित करि पितत रहै, जिन बच भावन हिरदै लहै। निरषन जन की दनि सुदेत, सिद्धि प्ररथ सुभ माता हेत ||१३६।। वीर माथ धुनि दिध्य पखान, देत बले भविजन को दान । करयो सुस्वामी देर विहार जातो गुरपन देकर :: ::!
विभिन्न प्रदेशों में महावीर का बिहार भंग बैग कुर जंगल ठए, कॉसल और कलिंगे गये । महाराठ सोरठ कसमीर, पग भीर कोकरण गंभीर ।।१३।। मेवपाट भोटक करनाट, कर्ण कोस मालव वैराट । इन प्रादिक से प्रारज देस, तहां जिन नाथ कीयो परवेस ॥१३६ ।। भष्प रासि संबोधत बीर, देस मगध फुनि प्राये धीर । गिरि भार विभूषित भयो, मानौ रवि उदयाचन्न ठयो । १४ ।।
__ भगव नरेश द्वारा महावीर बग्वना जिन विभूत लखि भकथ अपार, विसमयवंत भयो बन पार । नृप मंदिर सोबत ही जा, जहाँ सिंघासन बैठे राइ ।।१४।। स्वेस छत्र छवि रवि माताथ, दूरि करें सब टारे पाप । मुकट मयूस ममस्तल गई, इन्द्र धनुष रचि सोभा ठई ॥१४२।। सूर चंद सम कुंडल वर्ण, रतन अडित प्रति सोभित वर्ण । हार मनोहर गल में लसें, फिरनों करि उडगन को इसे ।।१४३।। दोरष दिनु भुज बाजुबंध, पर करकट कहर तम खंध । भेट अनेक जु प्राय लेइ, तिन पै हित सौ लोचन देह ।।१४४।। दंस मरीचि अधिक ही धरै, तिन कर भूतल उजल करें। मागम गुन गावं संगीत, तिन को सुनि करि धारै प्रीति ।।१४।। नृप कुलीन बहु थुति कौं फर, वर कृपान कर सोभा धरै । जान दीपो दरवानी जवं, ऐसो भूपति देख्यो तवं ॥१४६।। नमस्कार करि तहां वन पाल, कोनी विनती सुनि बाल । नाथ पंस म उपजे जोह, वीर नाथ जिन प्रायै सोह ।।१४७।। गिरि भार विभूषित कीयो, फुनि भूमंडल मचिरज सीयौ। महावाघनी कहना ठानि, मो मुत छीन निज सुत जानि ॥१४॥
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