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पाण्डवपुराण
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राण सदन पुर असिम नही, सवै नगर में राआ वहीं । मृतम अषन मानी महै, बहु मंदिर करि सोभा सहै ।। ११३।।
राजा श्रेणिक वर्णन श्रेनिक भूपति है तो और, नप गम मैं पनिये सिरमौर । सम्यक दृष्टि चित्र गम्भीर, परम प्रतापी धीर सुबीर 11११४।। प्रिय पेलिनी माफ गेह, माये जिन तिन जान्यो एह । पादिनाथ प्रबोध्यापुरि ठये, भरत भादि ज्यौं बंदन गये ।।११।। त्यौंहा श्रानक भूपते पल्या, दल भतरंग सुसाथे रल्यो । हिन हिनाट हय करते चले, गय मयमत्त सुगरजत भले ।।११।। नाना भाति प्ररथ सों भरे, ऐसे रथ सारथि अनुसरे । भटगन निरतत प्रति ही चले, बाजे बजहि मधुर धुनि रल ।।११७।। गावें जस बहु पारन भाट, ता श्रेनिक की पलते वाट । पलत राय सो पहुंचे तहाँ, समवसरन सुर राजै जहां ॥११८।। गज ऊपर उतरे तवें, घमर छत्र तजि दीने सवै । सिंघपीठ परि जिनि थिति फर, छत्र तीनि सिर सोभा घरै ।।११।। चार पतुर मुख च्यारौं दिसा, रवि सम ते जिनवर ते तिसा | सुर नर लग पति जाकौं नमै, तीनों मुवन पसंसा पमैं ।।१२।। पाठों मंग मही सौं साइ, नमन कोयौ परि मन बच काई । पूजा करि श्रुति कर अनूप, सब विधि पूरन थेनिक भूप ॥१२१।। श्रेणिक द्वारा महावीर की स्तुति
वोहा स्तुति जानिस्तोतारस्तुति, स्तुति फल फुनि प्रवलौह । पुति मारंभी वीर की, मन पत्र काम संजोइ ।।१२२।।
चौपाई सुम भगत भुवन पति सही, तुम थुति को सम कोउ नहीं । सुरपति सम भी असम भये, तुम गुन अंत म काहू लये ११२३॥