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________________ कविवर बुलाकीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज उक्त च श्राधमाचार भाषायां सवैग्या ३१ मृतिका महिष हेस स चालिनी मसक कंक ___ मारजार सूवा मज सर्प सिला पसु है । जलका सछिद्र कुभ इम के सुभाव ही तें सुभा सुभ श्रोता जानि कहे पारिदसु है । सम्यक विचारि इहे सुरस्वाभाव धारै उदरु भावर विशेष करि छिमा सौं सरसु है। भक्त गुरु भीरु भव जैन वैन पारन को । पारायन श्रोता गुन मृत्ति पसू हेसु है ।। ८१ ।। बोहा दार्थ जो उपदेस सुभ, ल इन बाता मुग्ध । ज्यो कच्च फूट पड़े, रहे न राख्यौ दुग्ध ।।२।। सब श्रोता हिरदै घरं, गुरु उपदेस जोछ । कोयो बीज सुभूमि ज्यो. भूरि गुनों फस होइ ।।३।। भय कथा लक्षणं दोहा कयन रूप कहीए कथा, सो है दोइ प्रकार । सुकथा जो जिन कही, विकथा और भसार ।।४।। चरम सरीरी जे महा, तिनके परित विपित्त । पुन्य हेत जहाँ वर्णीये, सो है कथा पवित्र ।।८५॥ पुन्य पाप फल बणीये, वरने त तप दान । द्रव्य क्षेत्र फुनि तीर्थ सुभ, अरु संवेग बखान ।।६।। जो स्व तत्व की पापि के, दूरि कर पर सत्व । शान कथा सो जानिये, जहां वरनै एकत्व ।।७।। गुन पूरन सभ्यक्त, सुभ बोष वृत्त संयुक्त । नाना विधि सो बीये, यह जिन भाषित उक्त ।।८।। उक्त घ श्रावकाचार भाषायां
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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