SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाण्डपुराण १५७ इहिं विधि सबै बिचारि के, बरन मुनी पुरान । वक्ता श्रोता मर कथा, सुभ लक्षण पहिचानि ।। ७२ ।। प्रथम वक्ता वरणम दोहा भब्य छमी सुबर गुनी, सुमि रुचित प्रथीन । न्यायवान नैयायिकी सीलयोन सुकुलीन ।। ७३ ॥ वतधारक वत्सल महा, भरु पंडित बहु होइ । लछिपीवंत सुमंत चिस, उत्तिम वक्ता सोच ।। ७४ ।। उक्तश्रावगामार भाषायां सर्वस्या ३१ विद्वत सुव्रत्तवान सुन्दर सुबनवान चारत प्रगल्भता जु इंगितग्य जानीये। प्रश्न मैं न योभ कर लोक को पिशान घरै स्यास पूजा मोहि निर इछक बखानिये । भाष मित मभिधान दया ही की होइ सानि अल्पश्रुत उद्धतानसु पुषता ठानीये ! बर्णत परुन सिष्य चाहिये सुवर्ण सुद्ध एसे मुन मागम से वक्तरि प्रमानीये ।। ७५ ।। अप धोता वर्णन दोहा सीलबंत सुभ दर्शनी सुभ लक्षण श्रीमान । सदाचार चर चक महा, चतुर भतुर गुनखान ॥ ७९ ॥ व्रती सुदाला भोगता पक्ष सुपूरन प्रा । हेयाहेय विचार कर थिर थाप जिन पक्ष ।। ७७ ।। प्रतिपालक गुरु वचन को, सावधान प्रधान । क्रियावंत घरमातमा, मानिनीक विद्वान ।। ७८ ।। सुनि अवधारे ग्रह रहे विमल चित्त विनयश ! स्थागी हास कषाय की सौ श्रोता सुभ प्तग्य ।। ७६ || कहे सुभासुभ भेद करि, श्रोता बहुत प्रकार । हंस चेनु ए श्रेष्ठ है, मध्यम माटी सार ।। १० ।।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy