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पाण्डपुराण
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इहिं विधि सबै बिचारि के, बरन मुनी पुरान । वक्ता श्रोता मर कथा, सुभ लक्षण पहिचानि ।। ७२ ।।
प्रथम वक्ता वरणम
दोहा भब्य छमी सुबर गुनी, सुमि रुचित प्रथीन । न्यायवान नैयायिकी सीलयोन सुकुलीन ।। ७३ ॥ वतधारक वत्सल महा, भरु पंडित बहु होइ । लछिपीवंत सुमंत चिस, उत्तिम वक्ता सोच ।। ७४ ।। उक्तश्रावगामार भाषायां
सर्वस्या ३१ विद्वत सुव्रत्तवान सुन्दर सुबनवान
चारत प्रगल्भता जु इंगितग्य जानीये। प्रश्न मैं न योभ कर लोक को पिशान घरै
स्यास पूजा मोहि निर इछक बखानिये । भाष मित मभिधान दया ही की होइ सानि
अल्पश्रुत उद्धतानसु पुषता ठानीये ! बर्णत परुन सिष्य चाहिये सुवर्ण सुद्ध एसे मुन मागम से वक्तरि प्रमानीये ।। ७५ ।।
अप धोता वर्णन
दोहा
सीलबंत सुभ दर्शनी सुभ लक्षण श्रीमान । सदाचार चर चक महा, चतुर भतुर गुनखान ॥ ७९ ॥ व्रती सुदाला भोगता पक्ष सुपूरन प्रा । हेयाहेय विचार कर थिर थाप जिन पक्ष ।। ७७ ।। प्रतिपालक गुरु वचन को, सावधान प्रधान । क्रियावंत घरमातमा, मानिनीक विद्वान ।। ७८ ।। सुनि अवधारे ग्रह रहे विमल चित्त विनयश ! स्थागी हास कषाय की सौ श्रोता सुभ प्तग्य ।। ७६ || कहे सुभासुभ भेद करि, श्रोता बहुत प्रकार । हंस चेनु ए श्रेष्ठ है, मध्यम माटी सार ।। १० ।।