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________________ कविवर बुलाको चन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज सकति हीन में ऐसी महा. तो भी शास्त्र करन कौं गहा । छीन घेनु म माया हेतमा न ई हिल सौं देन ।। ५.१॥ रवि समान जे पूरव सूरि, तिन हो द्रव्य प्रकासे भूरि । तिन कौं दीपक सकति समान, क्यो न प्रकास ज्योति प्रमान ।। ५८ ।। वर वाक की जे कवि भने, तर पलास बत जग मैं धने । पान वृक्ष थोरे वन माहि, स्यौं कवि उत्तिम जग बहुनाहि ॥ ५६ ।। दोष कवित्त को नास जेस, बिरले साधु जगत में तेछ । उज्जल कनक प्रगनि ते यथा, निरमल कवित करे ते तथा ।। ६० ॥ जे असंत हैं सहज सुभाइ, ते पर अर्थ हि दूखं घाइ। ज्यो दिन अंध लगावस घोष, देखन रवि को धारत रोष ।। ६१ ॥ ज्यों मदमत धरै बहुखेद, हेमाहेय न जान भेद । त्यौं जग मैं नर स्खल जो होर, सब ही कौं खल भारो सोइ ।। ६२ ॥ जलधर महिमा जग मैं कही, अंबुदान दै पोषत मही। त्यों सब जनों सज्जन लोग, देहि सदा सुभ सिया जोग ।। ६३ ।। संतासंत सुखासुल कर, सोम सपं सम उपमा घरै। कोविद जन सब आनत एम, ता वीचार सो हम को केम ।। ६४ ।। षट् प्रकार कहिये व्याख्यान, तिन मैं मंगल प्रादिहि जान । पौर निमित्त जु कर कारन ठान, कर्ता फुनि प्रभिधान जुमान ॥५५॥ प्रथम ही मंगल मा मैं कहा, जो जिनेन्द्र गुन गाए महा । जाक हेत जु करी ए ग्रंथ, सो निमित्त भव हरन सुभ पंथ ॥ ६६ ॥ भव्य वृन्द कारन जग लीन, ज्यों या मैं थेनिक परबीन । कर्ता मूल जिनेसुर मुनी, उत्तर कर्ता गौतम गुनी ॥ ६७ ।। तात उत्तर प्रौर जु भये, विष्णुनंदि अपराजित ठये। भगवाहु गोवद्धन और, इन प्रादिक कर्ता सिर मोर ॥ ६८ ।। भरथ विचार घर जो नाम, सोई नाम कहो अभिराम । ज्यौं पुरान यह पाडव सही, पुरु पुरुषन की महिमा कहीं ॥ ६६ ॥ मान भेद अब सुनीये सही, अर्थ गनत की संख्या नहीं। पद अक्षर की संख्या नाही, मोन भेद तुम जानौं यही ।। ७० ।। घट प्रकार यह भेद विचार, सुभ बलान करिए बुधि धार । पंच भेद वरने फुनि प्रौर, द्रव्य खेत्र प्रादिक तिहिं ठौर ।। ७१ ।।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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