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कविवर बुलालोचन्द, बुलाकोदास एवं हेमराज
का काव्य का प्रमुख उद्देश्य है लेकिन कवि ने पुराण के प्रारम्भ एवं अन्त में जो प्रभाव जोड़े है उससे काव्य का रूप पौर भी निखर गया है। पुराण के प्रथम प्रभाव में मंगल पाठ एवं श्रेणिक द्वारा वंदना वा भएन किया गया है। इसके पश्चात् प्रथम तीर्थ कर ऋषभदेव से ही पुराण प्रारम्भ होता है और संक्षिप्त रूप से काव्य रूप में कथा प्रस्तुत की जाती है। इसके पश्चात् शांतिनाथ कुथुनाथ एवं मरनाथ तीर्थंकरों का जीवन वृत्त दिया गया है ये तीनों ही तीर्थ कर थे साथ में चक्रवर्ती भी थे। ये सव वन पाण्डाबों के पूर्व भवों का सम्बन्ध जोड़ने के लिए ही किया गया है। इसी तरह कौरव पाणव महायुद्ध समाप्त होने के पश्चात् भी भगवान नेमिनाथ के जीवन एवं उनके उपदेशों का संक्षिप्त वर्णन, भगवान श्रीकृष्ण जी की मृत्यु, द्वारिका पहन, पाण्डवों द्वारा गृह त्याग एवं उनका प्रन्तिम मरण का वर्णन करके पाठकों को पाण्डवो के जीवन का पूरा वृतान्त बतलाया गया है।
पाण्डवपुराण का नाम दूसरा नाम भारत भाषा भी दिया गया है। शुभचन्द्र के पान्हवपुराण के अर्थ को समझकर उसके वर्णन को भारत भाषा कहा है।
मुनि शुभचन्द्र प्रनीत है कठिन प्रर्थं गम्भीर । जो पुरान पांडव महा, प्रगटै पंडित पीर ||४|| ताको पर्थ विवारि कै, भारथ भाषा नाम ।
कया पांडु सुत पंचमी, कोज्यो बहु अभिराम ॥५०॥
इसलिए पाण्डवपुराण को जन महाभारत भी कहा जाता है। वास्तव में यह पूरा महाभारत है जिसमें न केवल महाभारत का ही वर्णन है किन्तु युग के प्रारम्भ से लेकर जीवन के मन्तिम क्षण तक वर्णन किया गया है।
__ पाण्डव पुराण चीर रस प्रधान है जिसमें युद्धों का एक से अधिक बार वर्णन हुमा है । यद्यपि पुराण पान्त रस पर्यवशायी है, तीर्थकरों के उपदेशों का वर्शन हुना है लेकिन उसमें प्रमुख पात्रों की बीरता सहज ही देखने योग्य है । वे अकारण किसी से घबराते नहीं है, लेकिन अन्याय के सामने शिर भी नहीं झुकाते । पाण्डवों का जीवन प्रारम्भ से ही अच्छा रहता है। उनका. कौरवों के प्रति अच्छा ग्यवहार रहता है । कौरवों की सुख शान्ति के लिए वे अपने राज्य को प्राधा पाषा बांट कर भी सुख से रहना चाहते हैं। द्यूत कीड़ा में हारने के पश्चात् १२ वर्ष तक मज्ञातवास रहते हैं तथा अनेक कष्टों को भोगते हैं लेकिन अपने बचनों पर हत रहते है । युव तब होता है जम दुर्योधन १२ वर्ष पश्चात् भी उन्हें कुछ भी देने को तैयार नहीं होता। यही नहीं युद्ध में भी वे प्राय युद्ध के नियमों का पालन करते है