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________________ कविवर बुलाकीवास ૧૨ जबकि दुर्योधन रात्रि को सोते हुए पाण्डवों पर एवं उनकी सेना पर धोने से प्राक्रमण कर देता है । पाण्डवों का पूरा जीवन जैन धर्म के सिद्धान्तों के अनुसार रहता है। 1 भाषा पाण्डव पुराण के कवि मागरा निवासी थे इसलिये पुराण की भाषा पर ब्रज भाषा का सामान्य प्रभाव दिखलायी देता है। पुराण की भाषा सरल किन्तु ललित एवं मधुर है । कवि ने पुराण अपनी माता जैनुलदे के पहनायें लिखा था तथा उसे सामने बैठाकर इसकी रचना की थी इसलिये क्लिष्ट भाषा के प्रयोग का तो कोई प्रश्न ही पैदा नहीं होता फिर भी कवि ने अपनी पूरी कृति के कथा भाग को प्रत्यधिक सरस एवं मधुर बनाने का प्रयास किया है। प्रस्तुत पाण्डव पुराण हिन्दी की प्रथम कृति है इसके पूर्व सभी रचनायें प्रपत्र श एवं संस्कृत भाषा में निवस थी । इसलिये कविवर बुलाकीदास ने अपनी माता के प्राग्रह पर पाण्डव पुराण की हिन्दी में रचना करके साहित्य में एक नया अध्याय जोड़ा था । बुलाकील भुगल गावे शासन काल में हुए थे । उस समय फारसी एवं अरबी का पूरा प्रभाव था लेकिन कवि इन भाषाओंों के प्रभाव से पूर्ण रूप से मुक्त है । कवि ने सुर नृप संवाद में गद्य का भी प्रयोग किया है। यद्यपि संवाद पूरा सैद्धान्तिक है लेकिन कवि ने इसे अत्यधिक सरस बनाने का प्रयास किया है । गद्य का एक उदाहरण देखिये भो मित्र तुम सुनों यह बात ऐसी नाही जैसे तुम कहो हो । ता तुम सुनौ याको उत्तर । जिनमत के धनुस्वार से कहीं हो। सो तुम सावधान होइ के सुनौं । जो तुम क्षणिक अथवा सुभ्यमान हुगे । एकांत नय कर के तो द्रव्य सधने का नांही ॥ (पृष्ठ संख्या ६३) गद्य को भाषा पर बस का स्पष्ट प्रभाव दिखलायी देता है । छन्व कवि का दोहा एवं चोपई छन्द प्रत्यधिक प्रिय छन्द हैं। उस समय येही छन्द सर्वाधिक लोकप्रिय छन्द थे। पाण्डव पुराण इन्हीं दो छन्दों में निबद्ध है । लेकिन सर्वेया तेईसर, इकतीसा छप्पय, सोरठा, पडिल्ल, पाडी, छवों में भी पुराण निबद्ध किया गया है । प्रत्येक प्रभाव का प्रथम पद्य सर्वया छन्द में लिखा गया है। जो क्रमशः एक-एक तीर्थंकर से स्तवन के रूप में है । }
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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