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________________ कविवर बुलाखीचन्द, बलाकीदास एवं हेमराज शुभ भाव से मरने के कारण भीष्म पितामह पांच स्वर्ग में जाकर देव एक बीसी प्रभाव दूसरे दिन फिर पुद्ध प्रारम्भ हुमा । अभिमन्यु ने भीषण युद्ध किया । इसी समय दुर्योधन का पुत्र प्रचंड गति से बाण छोड़ने लगा । लेकिन यह अभिमन्यु के वारा मारा गया। इससे दुर्योधन ने योडाभों को अभिमन्यु को मारने के प्रोत्साहित किया । द्रोण, कर्ण कलिंगराजा सभी अभिमन्यु को मारने दोड़े। लेकिन कोई उपाय नहीं चला। भाखिर सबने मिलकर उसे घेर लिया। दुर्भाग्य से जयद्रथ मा गया और उसके हाथ से अभिमन्यु को प्राणघासक बाण लगा | अभिमन्यु ने उसी समय सभी कषायों से विरक्ति ले कर शान्त मित्त से भगवान को स्मरण करते हुये मृत्यु को वरण किया। अभिमन्यु के मरने से कौरवों में प्रसन्नता छा गयी जब कि पांडवों में शोक संतप्त छा गया। जयद्रथ की रक्षा के लिये द्रोण ने पूरे उपाय किये । लेकिम अर्जुन ने जयद्रथ का उसी दिन वष करने की प्रतिज्ञा की । भयानक युद्ध के मध्य अर्बुन ने जयद्रथ को मार भी डाला और उसके सिर को पिता की गोद में डाल दिया। इसके पश्चात् अश्वस्थामा मारा गया। मन कौरवों की हार पर हार होने लगी तो उन्होंने युद्ध के सारे नियमों का उल्लंघन कर रात्रि को सोते हुये पांडवों पर धावा बोल दिया। हजारों निहत्थे पांडव सेना मारी गगी फिर द्रोणाचार्य भी मारे गये । कर्ण व अर्जुन में परस्पर में घोर युद्ध हुआ और कर्ण भी प्रन के तीर से मारा गया । उधर भीम ने दुर्योधन के सभी भाइयों को एक एक करके मार डाला । इस पर भी दुर्योधन के हृदय की प्राग ठंडी नहीं हुई। मेंस कहि कौरव पति, चले जुद्ध को धाई। पांडव सेना सनमुखें, क्रोष प्रचंड बडाइ ।।४।। दुर्योधन भोर पांडवों के बीच भीषण युद्ध हुभा : लेकिन दुर्योधन बच नहीं सका पौर वह भी मारा गया । इसके पश्चात् शेष कौरव सेनापति भी मारे गये । पन्त में जरासन्ध भी कौरवों की पोर से लड़ने के लिए माया । जरासन्ध के साथ भीषण युद्ध हुमा । अन्त में जब जरान्सध ने चक्र चलाया तो वह भी श्रीकृष्ण जी के हाथ में पा गया। प्रौर कृष्णाजी ने चक्र चलाया तो उसने तत्काल जरासन्ध का शिर काट दिया। इस प्रकार १८ दिन तक भीषण लहाई होने के पश्चात् कौरव पांडव युद्ध की समाप्ति हुई पोर पर्याप्त समय तक पांडवों ने देश पर शासन किया।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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