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कविवर बुलाकीदास
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वाबीसवां प्रभाष
बहुत सयम व्यतीत होने पर एक बार धिष्ठर की राजसमा में नारद ऋषि का प्राना हया । महलों में द्रोपदी द्वारा नारद का लचिल सम्मान नहीं मिलने के कारण वह कुपित होकर यह उसके हरण का उपाय सोचने लगे। अन्त में घातकीखंड के सुरपुरि के पपनाभ राजा के पास गये और उन्हें द्रोपदी का पट चित्राम दिखलाया । पद्मनाभ चित्र देखकर उस सुन्दरी को पाने की अभिलाषा करने लगा मोर नारद से उसका पूरा पतान्त पूछ लिया। नारद द्वारा पूरा परिचय प्राप्त करने के पश्चात् वह यहाँ पाया और सोती हुई द्रोपदी का हरण करके अपने यहाँ ले माया । प्रातः होने पर जब द्रोपदी की नींद खुली तब उसने पारों मोर घेखा । पद्मनाभ राजा ने अपना सारा मृप्तान्त कहा और उसके सामने रानी बनने का प्रस्ताव रखा। द्रोपदी ने राजा पद्मनाभ को पांडवों का परिचय दिया । द्रोपदी के पुरा से हस्तिनापुर सीवादार भाष गय: । ा सुसज्जित कर दी गयी । पारों पोर तलाश होने लगी, इतने में वहाँ नारदमुनि पाये पौर कहने लगे कि धातकीखंड की सुनकापुरी के राजा पपनाम के यहाँ उसे प्रश्र वदना द्रोपदी देखी है । इस पर पाण्डव यहां अपनी सेना सहित पहुंचे । पपनाभ सेना देखकर घबरा गया और द्रोपदी से क्षमा मांगने लगा। प्राखिर उन्हें द्रोपदी मिल गई। सबने इस उपलक्ष में जिन पूषा कोनी। तेवीसा प्रभाव
सभी पाडय श्रीकृष्ण के साथ वापिस पा गये । पात्र अपने राज्य का समस्त भार अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को देकर मथुरा आ गये । इधर २२वें तीर्थकर नेमिनाथ ने गृह त्यागकर दीक्षा ग्रहण की मोर घोर तपस्या के पश्चात् कवल्य हो गया। भगवान का समवासरण रचा गया। कुछ समय पश्चात नेमिनाथ का समावसरण कयंत गिरि पर पाया । सभी पाण्डव उनके दर्शनार्थ गये। उन्होंने हरि राज्य एवं द्वारावती कब तक रहेगी यह प्रपन किया । इस पर नेमिनाथ ने कहा कि दीपायन ऋषि के शाप से वारिफा जलेगी तषा जरतकुमार के बाण से श्रीकृष्ण जी की मृत्यु होगी । जब जरत्कुमार ने श्रीकृष्ण की मृत्यु के समाचार पाण्डवों को जा कर कहे तो सभी पाण्डवगण रोने लगे। कुन्ती बहुत रोयी । अरकुमार को साथ लेकर वहीं गये जहाँ वलदेव हरि के मृतक शरीर को लिए हुए थे। पाण्डवों ने जब दाह क्रिया करने के लिए कहा तो बलराम बहुत क्रोधित हुए। कुछ समय पश्चात सर्वार्थसिद्धि से देव ने पाकर वसराम को सम्बोधित किया । प्रात में तुगी गिरि पर पाण्डवों ने मिलकर उनका दाह संस्कार किया । पिहिताबद मुनि के पास स्वयं बलराम ने भी जिन दीक्षा ले ली।
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