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कविवर बुलाकीदास
पैंसठ सहस सतक पट जानि
दस ऊपर हम संख्या ठानि । (६५६१०) एक लख्य नी सहसे मित्त,
तिनि सतक पंचासह पति ||१०९३५०।१८।
इतनी सैना इकठी हो,
एक छोहिनी गनीये सोइ ||
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कुन्ती ने द्वारका में जाकर श्रीकृष्ण जी से दुर्योधन के सभी कुक्कूश्यों को बतलाया और पाण्डवों पर किये जाने वाले व्यवहार के बारे में बतलाया । इस पर श्रीकृष्ण जी ने दुर्योधन के पास अपना एक दूत भेजा धीर पाण्डवों को भाषा राज्य से को सलाह मानने वाला था वह सो उल्टा क्रोषित हो गया !
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श्रीसवां प्रभाव
पांडव कौरव युद्ध के बादल मंडराने लगे । दुर्योधन को वहुत समझाया गया कि वह श्राधा राज्य पांडवों को दे दे। ऐसा नहीं करने पर जिनेन्द्र भगवान ने जी बात कही थी वही होगी। जब श्रीकृष्ण जी के दूत ने आकर उनसे सारी बात बतलाई । श्रीकृष्ण जी युद्ध के लिए अपनी तैयारी करली। पांचजन्य शंख को पूर दिया। शंख की आवाज सुनते ही कुरुक्षेत्र मैदान में सेनायें एकत्रित होते. लगी । कवि ने इस में चतुरंगिनी सेना का विस्तृत वन किया है। इसके पश्चात् कुरुक्षेत्र में खड़ी सेना कहां कहां खड़ी है, कितना संख्या बल है आदि सभी का दन किया है। कौरव पांडवों में घनघोर लड़ाई होने लगी। एक दूसरे को ललकार कर युद्ध के लिए मह्वान किया जाने लगा तथा एक दूसरे के पौरुष की हंसी उडायी जाने लगी । भीष्मपितामह युद्ध में जर्जरित हो गये कंठगत प्रारण आ गये तब उन्होंने युद्ध भूमि में सन्यास ले लिया व्रत धारण कर लिया । उनका अन्तिम सन्देश निम्न प्रकार बा---
और जब उनके तथा सल्लेना
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करौ परस्पर मित्रता तख सत्रुता चित्त ।
अब लौं क्या से भये, तुम निश्चै नहि किति ॥ ६५ ॥
जे केई रन में मरे गए निंद गति सोइ 1
सातै कीजे धम्मं अब, दस लक्षण प्रक्लोई ॥ ६६ ॥