________________
१४२
कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज भनेक उपाय किये । पहले चित्रांगद को भेजा लेकिन यह भी बुरी तरह हार गया । फिर कनकध्वज राजा ने पांडवों को सात दिन में मारने की प्रतिज्ञा की । भिल्ल के भेष में वह वन में माया और उमसे झगड़ा करने लगा। उसने द्रोपदी का हरण कर लिया । मापस में खूब विग्रह हुश्रा । लेकिन भील राजा द्वारा उसे मार दिया गया । इसके पश्चात् के गुप्त : भेष में विराट राजा के यहां पहुंचे और विभिन्न नामों से काम करने लगे । कीचक जैसे राक्षस को यहां भीम ने मारा । इसके पश्चात् धौर भी उपाय किये लेकिन, पाक की मिति साहस एवं शोय के कारण कुछ भी नहीं हो सका।
उनीसवां प्रभाव
दुर्योधन पांडवों को मारने के अनेक उपाय ढूढने लगा। उसने विराट राजा की गायों को चुरा लिया। गायों को छुड़ाने लिए अच्छा युद्ध हुमा । उसमें कौरवों के फितने ही वीर मारे गये । पांडव गावों को छुड़ाने में सफल हुए। पांडवों ने कौरवों के साथ युद्ध भी प्रज्ञात भेष में ही किया । जब विराट राजा को वास्तविकता का मालम हुमा तब वह कहने लगे--
मैं नहीं जाने कबली देव, धरमपुत्र तुम छमियो एवं । प्रय तें तुम ही स्वामी इष्ट, हम किंकर तुम पालक शिष्ट ॥शा याही पुर में बंधव संग, कीजे राज सदा निरभंग ।
बहुत विनय पौं असे भाषि, गोष्टी मैं संघ गोधन राखि ॥६॥ विराट राजा ने अपनी पुत्री का विवाह अभिमन्यु से कर दिया । विवाह में श्रीकृष्ण, बलराम, दुर्योधन प्रादि सभी राजा महाराजा एकत्रित हुए । विराट राजा ने सब की स्तू ब मात्र भगत की ।
राजा श्रीणिक ने जब एक प्रक्षौहिणी सेना का संस्था बल जानना चाहा । इसका समाधान निम्न प्रकार किया गयासहसइकीस सतक वसु लहै,
___ सत्तर फुनि गज संख्या लहै ।। से . तेही रथ गनीये तहीं, . .
हय संख्या प्रच सुनीयेसही ।। १ ।।