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________________ कविवर बुलाकीदास दी। दुर्योधन पादि राजामों ने अपना दूस भेजकर इसका विरोध किया । लेकिन राजा द्रुपद ने स्वयंवर के निर्णय को न्याय संगत बतलाया । दुर्योधन प्रादि राजानों ने युद्ध की घोषणा कर दी। चारों और युद्ध की तैयारी होने लगी । द्रोपदी यह देखकर हर गयी । परस्पर में खूब सुद्ध हुमा । अर्जुन एवं भीम ने अपने पराक्रम से सबको अमित कर दिया । जब द्रोण ने अर्जुन को ललकारा तो पर्जुन अपने गुरु के विरुद्ध बाण चलाने के बजाय बाण द्वारा अपना परिचय दिया । पांडवों को जीवित जानकर सभी प्रसन्न हो गये लेकिन कौरव मन ही मन जलने लगे। इसके पश्चात् पाण्डव हस्तिनापुर चले गये । सत्रहवां प्रभाष पाण्डवों एवं कौरबों ने अपना राज्य प्राधा बांट लिया । तथा सुख पूर्वक रहने लगे। युधिष्ठर ने इन्द्रप्रस्थपुर, भीम ने तिलपथ, अर्जुन ने स्वर्णप्रस्थ, नकुल ने जलपथ एवं सहदेव ने वणिकपथ नामक नगर बसाकर राज्य करने लगे । कुछ समय पश्चाद अर्जुन ने सुभद्रा का हरण कर लिया। दोनों का धूम धाम से विवाह हो गया । मजुम को कितने ही दैविक विद्याएं प्राप्त हुई । एक दिन दुर्योधन ने पाण्डबों को पास बुलाया तथा प्रेम से द्यूत खेलने को राजी कर लिया। धूत में पांडव सभी कुछ हार बैठे। छल करि जीते कौरव कंस, धरम तनुज हारे सरवंस । हारे हार रतन केयर, कटक सुसीस प्रकट द्युति पूर ॥७०।। दरघि धेश हारे बहुभंत, हारे हय गय रष संजूत । मन कमक भाजन मंडार, हारी जो छेत भ्रातासार ॥१॥ धूत क्रीडा में हार के कारण पांडव सम्पूर्ण राज्य हार गये तथा बारह वर्ष तक वनवास में रहने का निर्णय लिया । वे नगर को छोड़ कर कालिजर वन में रहने लगे। पठारहवा प्रमाव बन में जाने पर पांडवों को मुनि के दर्शन हुए । मुनि श्री ने प्रशुभ कर्मों का फल बतला कर सब को शुभ भविष्य के लिए प्राशान्वित किया । उसी वन में एक खेघर मिला । उसने पारय नप को रथनुपुर में रहने का आग्रह किया । अपने भाइयों के साथ वे पांच वर्ष तक बहा रहे । कौरव राज दुर्योधन ने पांडवों को मारने के
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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