SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर बुलाखीचन्द बुलाकीदास एवं हेमराज नवम प्रभाव प्रारम्भ में कवि ने कर्ण की उत्पत्ति पर एक यंग कहा है सुनिसि , महा मूढ हैं लोग । असे करर्णकुमार को, कर्णध कहत अजोग ।।२।। कर्ण कर्ण बात चली, जनम समै पुर ग्राम । तातै अन्धक वृष्टि नप, करणं धरयौ तिस नाम ।।३।। खाज उठी राधा श्रमन, बालक लेती वार । तात राजा भानु नै. भाष्यो कर्णकुमार ||४|| कर्ण भवो ओ कर्ण ते, तो यह सारि सिष्टि । म्यो नहि उपजे कर्ण ले. जात हद प्रनिट कर्ण नासिका नर भए, देखे सुने न कोछ । तातें उतपति कर्ण की, कर्ण विष किम होइ ॥६॥ इसके पश्चात् पाण्ड एवं कुन्ती के साथ विवाहू का कधि मे बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है। बरात का घढना, बरतियों द्वारा नाचगान, नगर की सुन्दरियों द्वारा पान्डु को देखने की इच्छा, प्रादि का मच्छा वर्णन किया है । पाण्डु का कुन्ती के साथ विवाह संपन्न हो गया । पाण्डु की दूसरी पलि का नाम मद्री था । कुन्ती से युधिष्ठर, भीम एवं अर्जुन तथा मद्री से नकुल एवं सहदेव पुत्र हुए । धृतराष्ट्र की पत्ति का नाम गंधारी था। जब वह सर्वप्रथम गर्भवती हुई तो उसे सौ पुत्रों की माता होने का भाशीर्वाद प्राप्त हुभा। पूरन मास वितीते जब, सुख सौ सनुज जन्यो तिन तब । तब बढ़दारनि नाइन घाइ, ताहि असीस दई हि भाइ ॥२०॥ सत सुत जनियौ सुख खानि, चिरंजीयो गंधारि रानि ।। जिहिं संग जुद्ध सु दुखते होइ, तातै भनि दूर जेधन सोह ॥२।। पांचों पांडवों एवं १०० कौरवों को द्रोणाचार्य ने धनुविधा सिखलायी। दशम प्रभाव एक समय पाडु एवं मद्री मन भ्रमण को गये। वन की सुन्दरता, एकाकीपन एवं प्राकृतिक छटा को देखकर वह कामातुर हो गया और मद्री को लेकर भुरमुट की पौर चला । यहां उसने एक मृग एवं मृगी को काम वासना युक्त देख
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy