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________________ कविवर बुलाकीदास १३५ पश्चात् अपने ही दो रूप दिखने के कारण वैराग्म हो गया और अन्त में सम्मेदशिखर से निर्वाण प्राप्त किया । षष्ट प्रभाव में १७ व तीर्थकर कुंथुनाथ एवं सप्तम प्रभाव में प्ररनाथ तीर्थकर का जीवन चरित वणित है । दोनों ही प्रभाव छोटे छोटे हैं। अष्टम प्रभाव में तीर्थंकर 'परनाथ' के चार पुत्रों से कथा प्रारम्भ होती इसी बीच ऊर्जायनी के राजा श्री वर्मा, उसके चार मन्त्रियों एवं प्रक. पनाचार्य संघ की कहानी प्रारम्भ होती है । मुनिसंघ के एक मुनि श्रत सागर द्वारा वादविवाद में जीतकर माने के साथ कथा में मोड़ प्राता है। __सातसौ मुनियों पर उपसर्ग, उपसर्ग निवारण हेतु विष्णुकुमार मुनि द्वारा बलि राजा से तीन कदम भूमि मांगना, प्रौर प्रकपनाचार्य आदि ७०० मुनियों पर से उपसर्ग दूर होने की कथा चलती है । जैनधर्म में रक्षाबंधन पर्व का इसीलिए महत्व है कि इस दिन ७०० मुनियों की विष्णुकुमार मुनि द्वारा जीवन रक्षा हुई थी। इसी प्रभाव में गंगासुत गंगेय द्वारा अपने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए पीवर कन्या गुगवति को लाया जाता है। राजपुर के राजा व्यास के तीन पुत्र घृतराष्ट्र, पांडु, एवं विदुर होते हैं । इसके पश्चात् हरिवंश की कथा प्रारम्भ होती है। घृतराष्ट्र के भाई पांशु द्वारा कुन्ती से समागम के प्रस्ताव का कवि ने अच्छा वर्णन किया है । कुन्ती कुवारी थी पांडु द्वारा प्रेमपाश में फंसने के कारण वह गर्भवती हो गयी । जब माता पिता को मालूम पड़ा तो वे बहुत कुपित हुए । कुन्ती के पुत्र हुमा । इसका नाम कर्णं रखा गया लेकिन लोक लज्जा से भयभीत होकर वे उस बालक को मन्जूसा में रखकर नदी में बहा दिया । वह बहता हुमा चम्पापुर के तट पर पहुंच गया जहां के रामा द्वारा पुष के रूप में पाला गया । १. पर सुत श्री अरविंद नप, ताके पुत्र सुचार । उपो दर सुचाते, साकं भूप सुसार ।।२।।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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