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________________ कविवर बुलाकीदास १३७ कर मकारण उसे अपने ही बाण से मार गिराया । अकारण ही मारने से पाकाश से प्राकाश वाणी हुई जिसमें उसे भला पुरा कहा और इस कार्य को निन्दनीय ठहराया । यहीं पर विहार करते हुए एक निर्ग्रन्थ मुनि भाये उन्होंने भी पार एवं मद्री को संसार की प्रसारता एवं भोगों की निस्सारता पर प्रवचन दिया । इंहि विधि मुनि के वचन सुनि, पांडु भयो भयवंत । जीवन संयम तडित सम, जानि छिनक छय संत ।।७।। तम चित मैं थिरता घरी, वन्दे मुनिवर पाए । अधिक भगति फरि थुति करत, चल्यो नगर को राइ पांडु राजा नगर में गये । अपने पूरे परिवार को एकत्रित किया और सबको काम विषयों की एवं जगत की मसारता तथा मृत्यु की अनिवार्यता पर प्रकाश डाला । अपने भाई धृतराष्ट्र को बुलाकर अपने पांचों पुत्रों को सौंप दिया पौर अपने पुत्रों के समान उनसे व्यवहार करने की । प्रार्थना की कुन्ती से पूत्रों को सम्हालने के लिए कहा । राज्य पाट त्याग कर गंगा नदी के किनारे जाकर जिन दीक्षा धारण करती और यावत् जीवन माहार न लेने की प्रतिज्ञा ले ली, मद्री रानी ने भी वैसा ही किया और दोनों ने मरकर प्रयम स्वर्ग में प्राप्त किया। एक दिन महाराण धृतराष्ट्र राज्य करते हुए बन भ्रमण को घले । वहाँ की एक गिला पर विपुलमती मुनि ध्यानस्थ थे। राजा को मुनि ने उपदेशामृत पान कराया। इसके पश्चात् धृतराष्ट्र ने मुनि से निम्न प्रकार प्रश्न किये अंसी सुनि श्री राइ, हे स्वामी कहीए समझाइ । मेरे सुत प्रति पाइव साज, इनमें कौन लहेगी रान ॥५७।। x .... x .... ४ .... x .... x पांडव पंप महाबल घनी, ह है कैसी थिति उन तनी ॥६१।। ए मेरे सुत पृथिवी माहि, छत्रपति ह है प्रकि नाहि । मगध देस फुनि सोभित महा, राजगृही पुरि तामै । जरासंध नप तामैं महा, प्रप्ति केशय सों मन्तिम कहा । उक्त प्रश्नों के अतिरिक्त धृतराष्ट्र ने और भी प्रश्न पूछे । मुनिराज ने तराष्ट्र के प्रधनों का निम्न प्रकार उसर दिया
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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