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________________ १३० कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज ग्रन्थ के अन्त में कवि ने अपने गुरु अरुणरतन, तत्कालीन बादशाह औरंगजेब तथा अपनी माता जैनुलदें के प्रति प्राभार व्यक्त किया है जिनके कारण वह ग्रन्ध रचना में सफल हो सका। नगर जहानांबाब मैं, साहिब मोरंगपाहि । विधिना तिस छत्तर दियो, रहे प्रजा सुख मांहि ।।४।। ताके राज सुचन मैं, वन्यो ग्रन्थ यह सार । ईति भीति व्या नहीं, यह उनको उपचार ।।६।। घन्य जु माला जेनुलदे, जिन बनवायो ग्रन्थ । जाके सुभ सहाइ त, सुगम भयो सिच पण 11६६।। मरुन रतन गुरु धन्य है, जिनके वचन प्रभाव । कठिन अर्थ भाषा लाग्यो, लायो सब्द प्ररथान ||७|| ___ गोयल गोत सिरोमनी, नन्दलाल अमलान । जस प्रताप प्रगटौ सदा, जब लग सनि भरु भान ।।१०३।। पाण्डव पुराण मुलाकीदास की यह सबसे बची विशालकाय कृति है । पाण्डवपुराण की मूल कृति भट्टारक शुभचन्द्र द्वारा संस्कृत में संवत् १६०८ में निबद्ध की गयी थी उसी के माधार पर पाण्डव पुराण की हिन्दी पद्य कृति बुलाकीदास द्वारा निबद्ध की गयी पाण्डवपुराण को प्रत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई है इसलिये राजस्थान के कितने ही शास्त्र भण्डारों में इसक्री पाण्डुलिपियां संग्रहीत है । पाण्डवपुराण का प्रारम्भ सर्वज्ञ नमस्कार से किया है । अंतिम त केवली भद्रबाहु का स्मरण करते हुए भाचार्य कुन्दकुन्द का निम्न शब्दों में गुणगान किया गया है १. प्रश्नोतर श्रावकाचार भाषा -- पद्य संख्या ११० - प्राकार १०+ ५ इन्च । ग्रन्थानन्य शलोक संख्या २५७२ - लेखन काल - स. १८०७ वर्ष श्रावण बदि ६ लिखंत सुधाराय ब्राह्मण । लिखायतं खुशालचन्द्र छाबड़ा पठनाएं हेतवे । शास्त्र भण्डार दि० जैन बडा तेरापंथी मन्दिर जयपुर ।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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