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कविवर बुलाकीदास
ब्राह्मी जिम पाषान की, उज्जयन्त गिरसीस
या कलि में वादित करी, कुन्दकुन्द मुनि ईस ॥१६॥
इसके पश्चात् श्राचार्य समन्तभद्र, पूज्यपाद, अकलंक स्वामी, भाचार्य जिनसेन गुणभद्र एवं अपने गुरु अरुणरतन का गुणानुवाद एवं उनके कम्मों का स्मरण किया गया है । वन श्रा एवं ऐतिहासिक प्रतीत होता है इसलिए उसे अविकल रूप से यहां दिया जा रहा है
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येथागम जिन स्तवन सौं प्रगट सुरागम कौन । समंतभद्र भद्रार्थमय, गुन ग्याक गुन लीन ॥ १७ ॥१ जिन वारधि व्याकरन को, लह्यों पार मृतिराय 1 पूज्यपाद निति पूज्य पर पूजो मन वचकाय ॥१६॥ निःकलंक प्रकलंक जस, सकल श्वास्त्र विद जेन । मायादेवी साडिता, कुम्भविता पादेन ।।१६।। चिरजीव जिनसेन जति, जाको जस जग मांहि । जिन पुरान पुरदेव कौ, वरन्यों बन्दी ताहि ||२०|| पुरणाद्रि परकासको सूर्यापित है जोइ ।
प्रभवंत गुणभद्र गुरु भूतल भूषन सोइ ||२१||
चरण रतन गुरु चरन जुग, सरन गहीं कर जीर ।
बरन ज्ञान के करन की तरुण फिरणि जिम भोर || २२|
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इसके पश्चात् कवि ने अपने वंश का परिचय दिया है जिसको पूर्व में उच्छूत किया जा चुका है । कवि की माता द्वारा पाण्डवपुराण भाषा सिखने, कवि द्वारा अपनी लघुता प्रदर्शित करके । वक्ता एवं श्रोता एवं कथा के लक्षण का वर्णन किया गया है । कथा का लक्षण निम्न प्रकार कहा गया है
कथन रूप कहिए कया, सो है दो प्रकार
सुकथा जो जिन कही, विकथा और प्रसार ॥ ६४ ॥ धरम सरीरी जे महा, तिनके चरित विचित्र । पुण्यहेत जहा वर्गीये, सो है कथा पवित्र ||६५॥