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कविवर बुलाकीदास
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तरी कोर: । प्राचिनीषकुल उतपाल
प्रथया नरक गति तिरजंच ठानिय । इनको जु त्यागी नर सोइ मूल गुन
वाही को मुकति यर प्रागम बस्खानिये । इसी प्रभाव में यमपाल पांडाल एवं धनश्री की कथा भी दी हुई है। त्रयोदश प्रभाव सरयाणुक्त एवं धनदेव सत्यघोष की कथा - ७४ चतुर्दश प्रभाव प्रदत्तादान विरतिव्रत एवं महाराज कुमार श्री वारिषेण तापस कथा
- ६१ पद्य पञ्चदश प्रभाव स्थूल ब्रह्मचर्याणुव्रत नीरुमा रक्षक कथा – ७० पद्य षोडशम प्रभाव परिग्रह परिमाणवत जयकुमार कथा – ७७ पद्म सत्रहवां प्रभाव तीन गुणवतों का वर्णन
___--- ६५ पछ अठारहवां प्रभाव पार शिकायतों में है शावकाशिक एवं सामाइक व्रत का वर्णन
--- १२० पध उगनीसवां प्रभाव प्रोषधोपचास नस वर्णन
– ३२ पद्य बीसवां प्रभाव पतुविधदान वर्णन ( वाप्यवृत्त ) - १४७ पद्य इक्कीसवा प्रभाव पतुर्विषदान कथा, जिन पूजा कथा थी । षेण, वृषभसेन मादि कथा
- ३६५ पद्य इस प्रभाव में पूजा पाठ भी दिया हुप्रा है । बाईसवां प्रभाव सल्लेखना, म्हारह प्रतिमा वर्णन में से
सामायिक प्रतिमा तक वर्णन -९६ पञ्च तेईसा प्रभाव ब्रह्मचर्य प्रतिमा तक वर्णन
-- ८४ पद्य चौबीसा प्रभाय शेष दो प्रतिमामों का वर्णन एवं ग्रन्थकार प्रशस्ति
-१०५ पद्य ग्यारह प्रतिमामों का वर्णन बुलाकीदाप्त ने माचार्य समन्तभद्र के रत्नकाण्ड श्रावकाचार के अनुसार लिखा है ऐसा उसने संकेत किया है
रतनकरंडक ग्रन्थ सो, देखि सिखो यह बात । वचन समन्त जु भद्र के, जानौं सत्य विख्यात ॥१॥