SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कविवर बुलाकीदास १२७ सर्व प्रथम कवि : लघुता प्रकको कई की महिमा का पर्शन करता है - मेघ बिना नहि पावर होहि, होइ मेघ तब स्पज सोइ । धर्म बिना त्यों सुख भी नाहि, सुख निवास क धर्म जुआहि ॥४॥ दोहा जैसे प्रजगर मुख विर्थ नाही सुधा निवास । पाप कर्म के करन स्यौं, लहै न सुख की वास ।।५।। प्रथम प्रभाव में ८४ पद्य हैं। दूसरा प्रभाव पजितनाप के स्तवन से प्रारम्भ किया गया हैं । इसके पश्चात् श्रावक निम्न प्रकार प्रश्न करता है-- सहा प्रश्न श्रावक करै, कहै ज स्वामी अनूप । कैसे दरसन पाइये, कहींमत फोन सरूप ।।५।। इस प्रश्न का उत्तर निम्न प्रकार है सप्त तत्व को सहन, कालो जु दरसन एट्छ । भभ्य जीव तातै प्रथम, तत्व ठीकता लेहु ॥६॥ इसके पश्चात् जीव प्रजीव प्रादि सात तत्वों में से जीव तस्व का म्यष हार एवं निश्चय की दृष्टि से कषन किया गया है। प्रजीव द्रव्य के कथन में पुदगल धर्म, अधर्म माकाश पोर काल मुख्य का सामान्य लक्षण कहने के पश्चात् मानव व्य का वर्णन किया है। पुण्य पाप का लक्षण जोड़ कर नो पदार्थों का वर्णन हो हो जाता है । पुण्य का कवि ने निम्न प्रकार कथन किया है-- पुन्य पदारथ सोह, सुख दाइक संसार में। पर ऊरध गति होइ, जो निर्मल भाव निबंध ॥१०४॥ बुलाकीदास ने प्रभाव (अध्याय ) समाप्ति पर निम्न प्रकार अपना परिचय दिया है-इति श्रीमन्महाशीलाभरण भूषित जैनी सुनु लाल बुलाकीवास विरचितायां प्रश्नोत्तरपासकाचार भाषायां सप्त-तत्व नव-पदार्थ प्रपणो नाम द्वितीयः प्रभाव: 1 तीसरे प्रभाव में सम्यग्दर्शन के स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है जिसका एफ पर निम्न प्रकार है
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy