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________________ कविवर बुलाखीचन्द, ब्लाकीदास एवं हेमराज बलाकीदास के दो प्रमुख ग्रन्थों का अध्ययन १. प्रश्नोसर आवकासार जैनधर्म में एकदेशधर्म एवं सर्वदेशधर्म नामसे धर्म पालन की दो प्रक्रियायें बतलायी गयी है । इनमें एकदेशधर्म श्रावकों के लिये एवं सर्वदेसधर्म का पालन साधुषों के लिए कहा गया है प्रथम धर्म श्रावक करै कही जु एको देस । द्वितीय धर्म मुनिराज को, भाषित सदिस ॥४६। सुगम धर्म श्रावक कर, धौ जु गृह को भार ।। कठिन धर्म मुनिराज को, सहै परीसह सार ।।५०॥ बारह भंगो के प्रन्यों में सातवां अंग उपासकाध्ययमांग है जो वृषम गण घर द्वारा कहा गया है । ये पादिनाथ स्वामी के गणधर थे । अजितनाथ ने भी श्रावकक्रिया का पूर्ण रूप से बखान किया । अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर एवं उनके पश्चात् होने वाले गौतम, सुधर्मा एवं जम्बुस्वामी ने श्रावक धर्म का विस्तार से वर्णन किया। इसके पश्चात् विष्णुकमार मुनि ने द्वादशांग वाणी का कयन किया । लेकिन धीरे धीरे भायु और बुद्धि दोनों में कमी माती गयो । भाचार्य कुन्दकुन्द ने श्रावकधर्म का प्रतिपादन किया। उनके पश्चात् जिस रूप में श्रावक धर्म चलता रहा तथा श्रुत शान प्राप्त किया उसी रूप में प्राचार्य सकसकीति ने धावक धर्म का वर्णन किया । भट्टारक सकलकीत्ति द्वारा प्रतिपादित श्रावक धर्म का वर्णन संस्कृत में था वह सामान्य बुद्धि वालों के लिए भी कठिन रहता था इसलिये उसे ही बुलबन्द अर्थात दुलाकीदास ने हिन्दी में छन्दोबद्ध किया । १ घडी मायु पर मेषा अंग, घट्यो धर्म कारन तिहि संग । कुनकुन्द पाचारण कयौ तासौ ज्ञान सरावा लहौ ।।६४॥ कम सो चल्यो जसोई धर्म, सशक जाधौ यसको मर्म । सकलकीति प्राचारण कयो, पायक धर्म सुभासौं सझौ ॥६॥ सकसकीति सुभ संस्कृत कयौ, कठिन भयं पंडित हो लछौ । नियो यु सई भरप विकार, इलसम्म मति बोरी सार ।।६।।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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