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__ (xv) ___ इस भाग के दूसरे ऋवि बुलाकीशस है जिनका पाण्डवपुरामा प्रत्यधिक लोकप्रिय ग्रंथ मामा जाता है। बुलाकीदास ने पाण्डवपुराण एवं प्रश्नोत्तरत्रावकाचार. दोनों ही ग्रन्थों का निर्माण एपनी माता मैनुल दे की प्रेरणा से किया था। सारे साहित्यिक जगत में पंडितः जल जैसी
सामापहीला महिला को मिलना कठिन है। बुलाकीदास का पाण्डवपुराण काव्य की दृष्टि से भी एक सुन्दर कृति है जिसमें महाभारत के पात्रों का बहुत ही उत्तम गति से वर्णन हुप्रा है। एक जैन कवि के द्वारा युद्ध का इतना सांगोपांग वर्णन अन्य काव्यों में मिलना कठिन हैं।
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इस भाग के तीसरे कवि है पाण्डे हेमराज । लेकिन हेमराज एक कवि ही नहीं है । एक समय में हेमराज नामके चार कवि मिलते हैं जिनमें पो तो बहुप्त उच्चयगी के कवि हैं। हेमराज पाण्डे का नाम हम सब जानते अवश्य हैं लेकिन उनके काव्यों की महत्ता एवं कला से अनभिज्ञ रहे हैं। हेभराज प्राचार्य कुम्द-कुन्द के बड़े भागे भक्त थे इसलिये उन्होंने प्रवचनसार, नियमसार, पंचास्तिकाय बसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्यों पर हिन्दी गद्य में टीका लिस्मी और फिर समयसार एवं प्रवचनसार को छन्दों में लिखकर हिन्दी जगत् को अध्यात्म साहित्य को स्वाध्याय के लिये सुलभ बनाया । पाण्डे हेमराज के ग्रन्थों का गद्य भाग भाषा के अध्ययन की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है किस प्रकार जन विद्वानों ने हिन्दी भाषा की अपूर्व सेवा की थी इस सबसे इन अन्यों के प्रध्ययन के पश्चात् अच्छी तर परिषित हो सकते हैं । यास्तव में हेमराज अपने समय के जबरदस्त विद्वान् रे तथा समाज द्वारा समाहत कांद माने जाते थे।
पाण्डे हेमराज के अतिरिक्त एक दूसरे कवि थे हेमराज गादीका । वे मूलतः सांगानेर थे लेकिन कामां जाकर रहने लगे थे। ये भी प्राध्यात्मिक कवि थे कुन्द-कुन्द के प्रवचनसार पर उनकी अगाध श्रद्धा थी । इसलिये उन्होंने भी इसे हिन्दी पद्यों में गूय दिया। उनकी दूसरी रचना उपदेश दोहा शतक है । जिसका पूरा पाठ इस भाग में दिया गया है। हेमराज गोदीका अपने समय के सम्मानित कवि थे। इसी तरह उसी शताब्दि में दो पौर हेमराज नाम के कवि हए जिन्होंने भी अपनी लघु रचनामों से हिन्दी जगत को उपकृत किया ।
प्रस्तुत भाग में बुलाखीचन्द के वचनकोश बुलाकीदास के पाण्डवपुराण, हेमराज पापड़े का प्रवचनसार (पद्य), हेमराज गोदीका के उपदेश