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________________ लेखक की अोर से "कविवर जुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज" पुस्तक को पाठकों के हाथों में देते हुये मुझे प्रत्यधिक प्रसन्नता है। विशाल हिन्दी जैन साहित्य के प्रमुख कवियों में उक्त तीनों ही कवियों का प्रमुख स्थान है। ये १७ वी १८ वीं सताब्दि के चमकते हुये प्रतिभा सम्पन्न चिन्होंने : महापू ति से उत्कीर माज एवं स्वाध्याय प्रेमियों को गौरवान्वित किया था। यह भी प्रसन्नता की बात है कि तीनों ही कवियों का प्रागरा से विशेष सम्बन्ध था जहां महाकवि बनारसीदास जैसे कवि उनके पूर्व हो चुके थे। उक्त तीन कवियों में बुलाखीचन्द का नाम हिन्दी जगत के लिये एक दम अनजाना है। प्राज तक किसी भी विद्वान् ने उनके नाम का उल्लेख नहीं किया इसलिये ऐसे प्रचचित कचि को हिन्दी अगत् के सामने प्रस्तुत करने में मोर भी प्रसन्नता होती है। बुलाखीचन्द की एक मात्र कृति 'वचन कोश' की अभी तक उपलब्धि हो सकी है किन्तु यही एक मात्र कृति उनके व्यक्तित्व को जानने/परखने के लिये पर्याप्त है 1 कवि ने अपनी पद्यात्मक कृतियों में बीच २ में हिन्दी गद्य का प्रयोग करके उस समय के चर्चित गद्य का भी हमें दर्शन करा दिया है। हिन्दी गद्य साहित्य के विकास को जानने के लिये भी 'वचन कोण' एक महत्त्वपूर्ण कृति है। लगता है कवि साहित्यिक होने के साथ इतिहास प्रेमी भी थे इसलिये उन्होंने अपने इस कोश में प्रवाल जैन जाति की उत्पत्ति, काष्ठा संघ का इतिहास, जैसवाल जैन जाति की उत्पत्ति का इतिहास, भगवान महावीर के सम पसरा का जैसलमेर में प्रागमन जम्बू स्वामी का कैपल्प एवं निर्वाण जैसी ऐतिहासिक बातों का पच्छा वर्णन किया है। प्रस्तुत भाग में हम वचन कोश के पूरे पाट नहीं दे पाये हैं कुछ प्रमुख पाठ देकर ही हमें सन्तोष करना पड़ा है।
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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