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वचन कोश
यह मन्त्रिनि मिलिकीयो काज थाप्पी जन पद सिर राज || जब वह भयो पहुमि को राइ । निजनि कु सब लियोबुलाइ ॥५६॥ वकोश देश बांधि के दयो । प्राप तिहून नगर राजा भयो । वामन कुल मोहित पापियो । तो में पत्र तिर्ने लखि दयो । ६० ॥ कोई बाभन को सोइ ॥
रूपे के रूपया सो पचि । एक अधिक नहीं तामें बांच ॥ ६१ ॥ तब इनमें ग्राी बात । बिद्धुरि कछु हमतें जात || एकाकी जिए साहि मनाइ । जाति मिलें आनन्द अधिका६ ||६२ । । आए गढ़ नीचें सागार || सकल पंच तहा लए बुलाइ ||६३|| सोई करो जो हो इक साथ ॥
बस चूक जु हम में परी
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बडो सोइ जो चित्त न धरी || ६४ || दुविधा मनतें करो विलीन ||
अब सब बरतो पूरब रीति ।
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तब सब पंचनि कियो विचार कीजे नहि नृप मान प्रहार ||६५ ॥ विनती करी राय सों सवें । श्राग्वा देहु अब हम तबै ॥ व्याहु काज नहीं नरेश 1 हट करो तो तज है देा ॥ १६६ ।। तब मन में सौचियो नरेन्द्र । हठ के किये नहीं प्रानन्द || मानि बात नूर गढ़ में गये। जैसवान दो विधि सब भये ॥६७॥ उपरोतिया जु गढ़ पर रहें। तिरोतिया जे नीचे कहें ॥
तब नृप सहित सकल परिवार बैठे जिनमन्दिर नृप आह्नि विनती करी जोरि के हाथ
काज समें उपज्यों यह नाम : बोलि पठाचे इहि विधि घांम ॥ ६८ ।। उपरोंतिया थये गुरु देव । काष्ठा संध करें तसु सेव || मूल संघ गुरु परम पुनीत । तरोंतिया उर तिनिकी प्रीति ।। ६६|| हि विधि बीत गयो कबु काल । राजा परचो जाइ जम जाल | राजधनी भयो पोरें भाथ | तिहिनपाल नाम कवाइ ॥७०॥ तिनि सब जैसावाल सु वंश । तहाते काटि दिए प्रवतंस || या अन्तर उपजी एक भली । जम्बू स्वामि अन्त केवली || ७१ ॥ मथुरा नगर निकट उद्यान । तहाँ प्रगटच प्रभु केवल शान ॥ तावत सबर्कों खग लो । जुरि श्राये मथुरा यन सोइ ||७२ || छोटि तिहुवन गिरि उठि घाइयो । जेसवाल बाल मानियो । प्रभु दरसन लइए नवि दंड । दुरमति करि मारि लत खण्ड || ७३||
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