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________________ ११२ कविवर बुलाखीचन्द बुलाकीदास एवं हेमराज तब उन वालक दयो बुलाब । रूप निरिख नृप मानन्द पाय || पूर्व महिपति सुनि रे बाल । ते क्यों जानों मम उरसाल ||४५ ।। बालक कहें उभय करि जोरि । अब प्रभु निज कर मूंछ मरोरि | कोष विना मूंछ नहीं हाथि । यायें हम जान सके नरनाथ ।। ४६ । । सुनि राजा परिफुल्लित भयो । कर गहि कंट लागि शिशु लयो || भादर सहित दिवाए खान । बिदा दई राख्यो बहु मान ॥ १४७॥ ॥ रहिने को दयौ पुर में ठांम । मन्दिर तहाँ सुभग प्रभिराम ॥ बसे प्रानि जब वीत्यो जोग । करें तहां बहु विधि के भोग ४८|| नृप पठयो एक दूत सुजान । जेसवाल सुतौ बुधिवान || मम जियम ऐसी बालकको भन तकों देकं सुता मम तनी सेवा करों बहु तुम तनी ॥ सुनस बात बोले सब लोग जो हम ऐसो करते काज । यह तो छोइ न कोई जोग ||५०१ जैसलमेर न तजसे श्राज ॥ बात सुनत नृप रिस हो । पकरि मगायो बालक सोइ ॥ ५१ ॥ fra कन्या दीनी परनाइ । क न काहू तो न बसाइ ॥ बालक नूप प्रनीति पहिचानि । छोड़ि दियो भोजन ग्रह पानी ॥५२॥ मात पिला देखों जब नैन | तब ही मो जिय उपजै चैन ॥ नहीं तो प्रश्न तर्जी निसन्देह | कोंन काज मेरो नृप गेह ||५३|| सब नृप जिय सोच अपार । बाल करें प्रपजस सिर नाइ || तब बालक को सब परिवार । गढ़ लाए वाही परकार ||४४ और हितू जे हे उनि तने । तेऊ जाइ बसे गढ़ घने || वर हजार द्व नीचे रहें। जिन गुरु वचन प्रेम सों गर्हे ॥५५॥१ तिनि सब मिलि यह ठहराव में कोक हमरी उनिकें नहीं जा गुरु वचननि की छाँडी टेक धनु मरु जीवन सब निजी तातें अब हम सों नहि खेल । गुरु वचननि कोए सीसु खेल | इह विधि स्यों गयो काल वितीत राज काल कियो अनचित || १८ | विसों अब परम प्रभाव ।। । उनिको ह्यां कोऊ धरे ने पाइ ॥१६॥ कहा भयो बालक गर्यो एक ॥। धर्म तनौ मलि होइ प्रभाव ||१७||
SR No.090254
Book TitleKavivar Bulakhichand Bulakidas Evan Hemraj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1983
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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