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बचन कोश
सचिव कहें हमें गर्व अपार । याही त नप ए दीए निकार ॥ सुनि राजा कर भूगि धर्यो । मन में रोस संघ पर कर्यो ।।३।। मुख ते कळू न पारी उचार । प्राए महीपति नगर मभार ।। माप तने कछु बालक वंग । क्रीडित हुते तहां मनि रंग ।।३२।। निनि में हुतो एक बुधियान । नप चरिन सब वह पहिचान ।।
लि अायो मिस मंग मझार । बैठो जहाँ सकल परिवार ।।३।। बालक भवनों भाषी बात । नप की बेगि मिलो तुम तात ।। नहीं तो मान भंग तुम होय । सत्य घचन मांनी सब कोई ॥३४॥ सब सब बहकर उठे अकुलाइ । चलो जाइ देखें पुर राइ॥ मनि मानिक मुक्ता फल भले । राजा भेट काज ले चले ॥३५।। पहुँचे जाइ नपति के द्वार । भेट घरी अरु करयो जुहार ।। राजा पुबै ए को हैत । जिनि में प्रौल तनो उद्दत ॥३६।। सचिव कहें ए सब सुना भूपाल । हम चित नही सर्व को साल ।।
प प्रनीत त्यागे निज देश । चलि पाए तुव धारण नरेश |1३७|| करी हुती जहाँ जिय में चिंत । बीतें भादव वरत पुनीत ।। देखें जाइ चरण प्रमु तनौं । प्रौर मनोरथ चित के भनौ ।।३।। मांगि लेक कछु भूमि विसाल । तहाँ बसें हम अंसवाल !! अब जब सुनि राय रीस धरी । तब हम प्राइभेट अब करी ॥३६॥ तब तुप निय विसमय अधिकाइ । मैं निज रीस काहू न जताइ ।। तुम क्यों जान्यो मेरो क्रोध । मिनु भा किहि विधि भयो बोष ॥४०॥ तब सब मिलि नृप सों विनए । जा दिन तुम प्रमु क्रीडा बन गए। पूछी सकल हमारी बात | सचिव कही जैसी इह तातं ।।४१॥ तहां एक बालक हमरो हुतौ । बुधियान क्रीडा संजुतो ॥ तिनि सब बात कही समझाम । बेगि मिली तुम नृप को जाइ ।।४।। क्रोध किये हम ऊपरि चित्त । मैं भाषी सब सों सब सत्ति ।। पा पर हम जिम में बहु सके । आप मिलिम महा भय थके ।।४३॥ सुनि करि तब बोस्यो क्षिति पाल । वेगि बुलायो अपनो बाल ।। जिनि मम जिय को पाई बात । पूलों बोघ तनो अवदात ॥४४॥