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कविवर बुलाखीचन्द, बुलाकीदास एवं हेमराज.
देई पतुर्विध संघहिं दान । निसि दिन शनि गों में पुरान 11 पालिद गेह हुते जे लोग । तिनिके नाना विध के भोग ।।१७।। सब के अटल नजि घर भई । सकल त्याग बनिज बुधि राई ।। या अन्तर एक प्रांवक धान । कन्वा रूप भई अभिराम ॥१८॥ तास रूप की सब पुर दास नप जिम उपजी व्यानि बात ॥ पठयी दूत कायो हम देहु । कन्यां दान तनो फल एऊ ।।१६।। सुनत सबनि के विसमय भई । कौन बुद्धि राजा यह गई। पंच सकल जुर करि पाइयो । अब हम जन धर्म प्रत लयौ ॥२०॥ प्रपर जाति सो रह्यो न काज । खान पान अक्ष सगफन साज ।। दूत कहो राजा सों बाइ । हठ किए बिसमय अधिकाई ।। सुनि राजा कहि पय्यो फेरि । तो तुम त्यागो जैसलमेर ।। जहां लहों न लगी मेरी प्रांन । रजा ऐसी कही निदान ।।२२।। तब वे सकल चले तजि ठाम । जैन मती जिन से अभिराम ॥ जिहिं पुर पाइ संथ यह परें निरिनि सबै कोज पूछन करें ।।२३।। कौन देश ते आयौ संघ । कौन जाति फही कारण चंग ॥ उत्तर देई सबै गुणमाल । बंधा इक्ष्वाक जेसवाल ।।२४॥ जेसवाल तब ही त जान । जेसवाल काहित परवान ।। चले चले आये सब जहाँ । हुती तिह गिरी नगरी जहाँ ।।२५।। ता पुर हुतो निकट यन चंग । उत्तरयो तहाँ जाइ वह संघ ।। पायें यह जहाँ चासुरमास । सफल संघ कहा कियो निवास ॥२६।। बीते रहाइ दिन जबे । वन त्रीड़ा नप निकस्यो तबै ।। कटक दृष्टि नप के जब परयो । सबनि कों पूछन्न अनुसऱ्या ॥२७॥ का को कटक कौन पाइयो । प्रा वन तू पूछाइयो ।। कहें मन्त्री ए जेसवाल । सनि लियो मत जैन रसाल ।।२६।। नप कन्यां न :ई याह । दई नहीं रूस्यो नर माह ।। निज पुर ते ए दये निकार । चलि पाये या देश मझारि ।।२६।। चातुर्मास प्राबड़ो पाइयो । नाद बहि तन छाइयो || राजा कहें सुमो परान । क्यों न मिलि हैं हम को मान ॥३०॥