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________________ जिस प्रकार प्रखंड द्रव्य अपने गुणों से और पर्यायों से युक्त है । गंधकुटी में जैसे सर्वनदेव शोभायमान होते हैं वैसे ही एक प्रखंड चिदानन्द चतन्य स्वरूप, विज्ञानधन-स्वभाषी मेरा परमात्मा मुझ में विलसित है । इतना ही नहीं, कविवर ने भरम का विनाश करने के लिये और तत्व को प्रकाशित करने के लिये जिनवर के चरणों की शरण ग्रहण की है और उनके ही प्रसाद से अपने ग्रानको जायक माना है सथा परको व शरीरादि को जड़ जाता है । स्व-संवेदगम्य, ब्रह्मानुभूति स्वरूप, प्रात्मानुभव का वर्णन करता हुमा कवि कहता है प्राज निजपुर में (प्रात्मा मे) होली मची है । पानन्द से उमगकर सुमति रूपी गौरी (जीवात्मा) चिदानन्द परमात्मा के भाने का उत्सव मना रही है । प्राज सभी प्रकार की लोकलाज को छोड़कर ज्ञानरूपी गुलाल से अपनी झोली भरकर होली खेलने के लिये सम्यकस्वरूपी केशर का रंग धोलकर चारित्ररूपी पिचकारी छोर रही है । तस्मरण ही मजपा-गान होने लगा और अनहद नाद की झड़ी लग गई। कविवर बुधजन कहते हैं कि स्वयं उस ग्रानन्द धारा में निमज्जित होकर अलौकिकता का बेदन करने लगा हूं। हिन्दी साहित्य के क्रमिक विकास में जैन साहित्यकारों ने पर्याप्त योगदान दिया है । उन्होंने हिन्दी साहित्य को सदा आध्यात्मिक, साहित्यिक, सामाजिक एवं नैतिक पृष्ठभूमि में तष्ठित कि उनके साहि ने जामात्रकार में भ्रमित प्राणियों का दिशा निर्देशन कर ज्ञान प्रालोक प्रदान किया । हिन्दी के मुर्वन्य जैन कवियों में सरलता से बुधजन का नाम लिया जा सकता है। सरलता मोर सादगी, सतत अध्यवसाय और चितन उनके जीवन के अभिन्न अंग थे। उनकी रचनामों में भी हम सरलता (प्रसाद गुण) और भव्यता की झांकी देख सकते हैं। इस प्रतिभा शाली साहित्यकार के विषय में डा० नेमिचंद्रजी ज्योतिषाचार्य, आरा, डा. कस्तुर चन्दजी कासलीवाल, जयपुर, डा राजकुमारजी जैन, प्रागरा, डा० रामस्वरूप प्रादि ने कविवर बुधजन के सम्बन्ध में प्रकरणवश संक्षेप में प्रकाधा डाला है किन्तु उनके विवेचन से कविवर बुधजन की महत्ता एवं रचना कौशल का हिन्दी जगत को यथावत परिझान नहीं हो सका ।। महापंडित राहुल सांकृत्यायन, प्राचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, डा. हीरालाल जैन, डा० वासुदेवपारण अग्रवाल प्रादि विद्वानों के शोषपूर्ण लेखों के परिणाम स्वरूप एवं उनकी इस स्वीकारोक्ति के कारण कि हिन्दी साहित्य का इतिहास जैन साहित्य के अध्ययन मनन के बिना अपूरण एवं पंगु ही रहेगा,"आज भी मनन, चितन के लिये प्रेरणाप्रद है। हिन्दी साहित्य का अध्ययन करने पर एक बात सदा मन को कचोटती रही कि अनेक जैन कवियों एवं साहित्यकारों ने सोलहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक हिन्दी साहित्य की पर्याप्त सेवा की, तथापि उनकी रचनामों को साम्प्रदायिक कहकर साहित्य की कोदि में नहीं लिया गया। इसका विवेचन तथा विश्लेषण करना
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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