________________
(ix)
मृत्यु महोत्सव, चमितक, सरस्वती पूजा और भक्तामर स्तोत्रोत्पसिकथा इन रचनामों को नामों का उल्लेख भी मिलता है । इन रचनामों में से मृत्यु महोत्सव और चर्चा शतक नाम की कोई पृथक् रचना प्राण तक लेखक के देखने में नहीं माई । कई जैनमन्ध मंडारों का निरीक्षण करने पर भी यह निश्चित नहीं हो सका कि इस नाम से कोई स्वतंत्र रचना कविवर द्वारा रचित है। ग. कामताप्रसाद जैन, डा० नेमिचन्द्र शास्त्री तथा पं० परमानन्द शास्त्री ने कवि की जिन रचनामों का उल्लेख किया है उनमें भी उक्त रचनाओं का उल्लेख नहीं किया गया है। हमारे विवार में मृत्यु महोत्सव तथा चर्चाशतक पद संग्रह (स्फुट पर) के ही श प्रतीत होते हैं । इसी प्रकार सरस्वती पूजा का समावेश "बुषजन विलास" में लक्षित होता है । अब केवल भक्तामर स्तोत्रोत्पति कथा ही रह जाती है। वास्तव में राजस्थान के जैन अन्य भंडारों की सूची में भूल से इस रचना का नाम मुद्रित हो गया है या फिर यह किसी अन्य कयि की ही रचना है।
उक्त अध्ययन से यह स्पष्ट है कि पावि की १२ नोलिक स . अविस स्थना है। पं० परमानन्दजी शास्त्री ने तत्त्वार्थबोष को तत्वार्थसूत्र के विषय का पल्लवित अनुबाद माना है। परन्तु नाम सारस्य या विषम सादृश्य के माधार पर न तो हम उसे सस्वार्ष सूत्र का ही अनुवाद कह सकते हैं मोर न गोम्मटसार का, क्योंकि इसमें जन धर्म तथा सिद्धान्तों के प्राचार पर मुख्य रुप से सात तत्वों का तथा मंगभूत विषयों के रूप में लगभग एक सौ विषयों का वर्णन किया गया है । हां, यह अवश्य कहा जा सकता है कि रचनाकार की मुख्य शैली प्राचार्य उमास्वामी के तत्वार्थ सूत्र का अनुवर्तन करती है।
मालोच्य कवि मूल में संत परंपरा के कवि थे। मध्यकालीन हिन्दी-संतकवियों की भांति कविवर बुधजन ने भी ज्ञानधारा में हुबफर निर्गुण, निरंजन, निराकार परमात्मा की विविध मनुभूतिमयी भाव छवियों का वर्णन किया है । एक संत कवि की भांति गुरु का महत्व भी उन्होंने गाया है। वे कहते है कि गुरु ने ही हमें शान-प्याला पिलाया है। मैं प्राज तक ज्ञानामत का रसास्वादन नहीं कर पाया था; पर भावों के रस में ही मतवाला था । प्रतः परमात्मा की सुष-युष नहीं थी। किन्तु गुरु कृपा से शानाभूत का पान करते ही मैं उस ज्ञानानन्द को उपलब्ध हो गया हूँ और इतना थक गया हूँ कि क्षणभर में ही समस्त बंजाल (संकल्पविकल्प) मिट गये हैं। अब मैं ध्यान में मग्न होकर अद्भुत प्रानन्द-रस में केलि कर रहा हूं।
कविवर ने स्थान-स्थान पर स्वारमानुभूति तथा अनस गुणशान से भरपूर परमात्मा-राम का स्मरण किया है। वे यह भी कहते है कि मेरा सांई मुझ में ही है । वह मुझ से मिल नहीं है । जो उसे जानने वाला है, वही जानता है । बह धनंत दर्शन, अनंतशान, अनन्त सुख और मनन्तशक्ति का धारक है, वह ज्ञायक है ।