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तक वे जीवित थे। उसके बाद ही उनकी मृत्यु हुई होगी । ग्रतः मृत्यु तिथि वि० सं० १८६५ अनुमानित है । यह कवि की निम्नतम समय-सीमा है। अधिक से अधिक वि० सं० १८१५ से लेकर १६०० तक कवि का समय माना जा सकता है। क्योंकि उक्त समय (१८३५ - १८६५) कवि का रचनाकाल है ।
कविवर बुधजन उनको परंपरा में कई हिन्दी लेखकों तथा कवियों की लम्बी परंपरा प्रकाशमान होती है । जैन कवियों में पं० दौलतराम, चैनसुख, जैतराम, पारसदास, जवाहरलाल, जयचंद, पं० महाचंद और पं० टोडरमल आदि के नाम इतिहास का विवरण प्रस्तुत करने वाले भालेखों में यांकित है, किन्तु कविवर बुधजन का नाम इस प्रकार की सूचियों में नहीं मिलता है । इसका कारण यही प्रतीत होता है कि १९वीं शताब्दी के प्रारंभ में जब ये भालेख प्रस्तुत किये गये, तब तक हिन्दी नई चाल में ढल चुकी थी और इस परंपरा को विकसित करने वाले कवि अपनी साहित्यिक साधना से जन-मानस तक नहीं पहुंच सके थे फिर भठारहवीं शताब्दी में आध्यात्मिक चेतना को लेकर मँया भगवतीदास, पं० भागचन्ध, धानत राय भूधरदास, दौलतराम (द्वितीय) तथा चेतन कवि भादि अनेक जैन साहित्यकारों की एक दीर्घ परंपरा ही विलासमान होती रही। इस युग के अधिकतर जैन कवि अध्यात्म के रंग में रंगे हुए लक्षित होते हैं । अतः " कविवर बुधजन " भी उससे अछूते नहीं रहे। उनका मुख्य विवेच्य विषय ही तत्वार्थ या प्रध्यारम है !
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यद्यपि प्रविधि संकलित जानकारी तथा प्रकाशित सूचियों के अनुसार कवियर बुधजन की रची हुई १४ रचनाएं ही उपलब्ध हो सकी हैं जिनकी सूची इस प्रकार है :
(१) नंदीश्वर जयमाला ( वि० सं० १८३५)
(२) विमल जिनेश्वर की स्तुति ( वि० सं० १८५० )
(३) वन्दना जखड़ी (वि० सं० १५५५ ) (४) छाला (वि० सं० १८५६ )
(५) बुधजन विसास (वि० सं० १८६० ) (६) दोषबावनी (वि० सं० १८६६ ) (७) जिनोपकार स्मरण स्त्रोत (वि० सं०) (८) इष्ट छसीसी
(e) बुधजन सतसई (वि० सं० १८७६) (१०) तत्वार्थ बोध ( वि० सं० १८७६ ) (११) पदसंग्रह (वि० सं० १५००-६१ ) ( स्फुटपद )
(१२) पंचास्तिकाय भाषा ( वि० सं० १८६२ ) (१३) वर्द्धमान पुराण सूचनिका (वि० सं० १८९५) (१४) योगसार भाषा ( वि० सं० १८९५ )