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________________ (xi) मेरी प्रनाः प्रेरणा का स्रोत रहा है । मेरी हार्दिक इच्छा विगत कई वर्षों से थी कि मैं कुछ कार्य करू, परन्तु ऐसा करने का सिलसिला तब तक जम न सका । सौभाग्य से इन्दौर में साक्षात्कार होने पर पादरणीय डा. देवेन्द्रकुमारजी शास्त्री, नीमच ने मेरा उत्साह बढ़ाया एवं प्रेरित भी किया एवं श्रद्धय गुरुवर्य पं. नायूलाल जी शास्त्री, संहिसासूरि इन्दौर ने मुझे शुभाशीर्वाद दिया । उक्त शोष प्रबंध में डा. देवेन्द्रकुमारजी शास्त्री ने मुझे जितना संभाला है, उनके प्रति कृतज्ञता करना धृष्टतामात्र होगी। उनके पवित्र निर्देशन में यह मोध कार्य पूर्ण हुन्मा है । वे निःसंदेह एक प्रादर्श निर्देशक हैं। यदि भक्टर साहब की प्रेरणा एवं निर्देशन प्राप्त न होता तो मैं भी हूँढारी (राजस्थानी) लोकभाषा के माध्यम से विक्रम की १६ वीं शताब्दी में हिन्दी साहित्य की सेवा करने वाले भनेक ग्रंथों के रचयिता कविवर बुधजन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर शोधकार्य करने को उद्यत न हपा होता । प्रस्तुत गोध-प्रबंध में कविवर बुधजन को प्राप्त सभी रचनात्रों और उनकी जीवनी का अध्ययन एवं मंधन करने का प्रयत्न किया गया है । कवि की जीवनी एवं रचनाओं में मौलिक तत्वों की गवेषणा के साथ विभिन्न सामाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक प्रभावों को स्पष्ट करना रहा है । अन्तक्ष्यि और बहिसाक्ष्य के प्राचार पर कवि का काल निर्णय किया गया है । आज का हिन्दी सेवी संसार अन हिन्दी पदकारों की भध्यात्म रसमयी काव्य धारामों में अवगाहन कर ब्रह्मानंद सहोदरी रसानुभूति करे और इस उपेक्षित धारा का भी भारती माता के मंदिर में यथोचित समादर प्राप्त हो, मुख्यत: हमारी यही दृष्टि है । कविवर बुधजन की रचनाओं में उनका जीवन त्यागमय, संयत्त, अध्यात्मपरका एवं मानक्म से प्रोतप्रोत परिलक्षित होता है। उनकी उज्जवल रचनाएं उनके हृदय की उप्रवलता का प्राभास देती है। उनकी रचनाओं के अध्ययन से स्पष्ट है कि पर्याप्त अध्ययन-मनन के बाद ही लिखी गई है। कवि की अध्यात्म प्रधान रचनाएं जनहित के शाश्वत पाथेय होने के कारण वर्तमान में तया मावी पीढ़ी के लिये भी सदैव एक आदर्श प्रकाश स्तम्भ का कार्य करेंगी । वे बहुश्र त विद्वान थे । वे अपनी विद्धता एवं रचना चातुर्य के कारण हिन्दी के साहित्य-जगत् में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उनका नाम हिन्दी साहित्य जगत् में संभवतः इसलिये प्रसिद्ध नहीं हो सका क्योंकि उनकी अधिकांश रचनाएं भप्रकाशित थीं। उन्होंने अपनी रचनामो के लिये तत्कालीन लोक भाषा ठूढारी (राजस्थानी) को चुना था जो उस समय जमपुर क्षेत्र की लोक भाषा थी। प्रस्तुत शोध प्रबंध के प्रथम अध्याय में ऐतिहासिक, राजनैतिक एवं तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों के साथ-साथ साहित्यिक गतिविधियों पर विचार किया
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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