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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व इनकी रचनाप्नों में रूपक मलकार के दर्शन होते हैं । यथानिजपुर में आज मची होली, निज पुर में | उमगि चिदानन्द जी इत प्राये, उत पाई समक्ति गोरी ।।१।। लोक्साज कुल कानि गंवाई, कान गुलाल भरी झोरी । समक्ति केशर रंग बनायो, पारित की पिक छोरी ।।२।। गावत भजपा गान' मनोहर, अनहद झरसों वरस्योरी । देखन भाये "युधजन" भौगे, निरख्यो ख्याल प्रनखोरी ।।३।।
पद संग्रह भक्ति रस गीतों से प्रोतप्रोत एक संकलन मात्र है, जिसे गाकर कवि ने शान्ति का अनुभव किया होगा। जन जगत में “बुधजन" के पदों का अत्यधिक प्रचार है। अब तक उनके २६५ पद प्राप्त हो चुके हैं । पदों के प्रध्ययन से पता चलता है कि वे उच्च प्राणी के कवि थे । प्रारभा-परमात्मा एवं संसार सम्बन्धी चिन्तन कई वर्षों तक करते रहे धौर असी का परिशीलन भी किया करते थे। ' उन्होंने अन्य कवियों की भांति प्राम-दर्शन किये थे । 'जैन साहित्य में रूपकों की · अटा केवल "बुधजन" की रचनात्रों में ही नहीं, उनके पूर्ववर्ती प्रपना भाषा के कवियों की रचनाओं में प्रचुरता से मिलती है। इन विचारों की रचना पौर मात्मानुभूति की प्रेरणा पाठकों के समक्ष ऐसा चित्र उपस्थित करती है, जिससे पाठक प्रास्मानुभूति में लीन हुए बिना नहीं रहता 1 संसार में मनुष्य अपनी पर्थशक्ति मौर जन शक्ति का बड़ा भरोसा रखता है। कि समय पाने पर हमारा धन और मालापिसा, पुत्र-मित्र, स्त्री एवं परिजन वगैरह अवश्य ही हमारे काम प्राऐंगे और विपत्ति 'हमारा साथ देंगे। धनादि को वह अपनी निकटतम वस्तुए मानता है, परन्तु समय पर वही मनुष्य देखता है कि उसका पैसा और उसके स्वजन-परिजन कोई भी अपत्ति के साथी नहीं है—एक भी ऐसा नहीं है जो उसकी विपत्ति को हलका व उसे मालूम पड़ जाता है कि जगत में जिस धन और स्वजन-परिजन अपना कहकर उद्घोष करता था उनमें से एक भी उसका नहीं है । विपत्ति में यदि कोई सहायता करता है। उसे शान्ति-सुख और
वह है उसकी मात्मा का भाव कर्म ।
रंग शीर्षक से "अहिंसा वाणी" पत्रिका में प्रका० वर्ष
7, हिन्दी पर समह, पृ० १६० वि० जन अतिशय · भवन, जयपुर, मई १९६५
भाषा और साहित्य, पृ० सं० २७७