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________________ बुधजन द्वारा निबद्ध कृतियां एवं उनका परिचय प्रात्म-परिणाम, शान्ति, संतोष और समता प्रादि ही अपने कहे जा सकते हैं क्योंकि ये भाव प्रात्मा के स्वभाव हैं जो निरंतर प्रात्मा के साथ रहने वाले हैं । धनस्वजन-परिजन प्रात्मा से पृथक हैं और हर हैं । इति जो वस्त पानी नहीं है, उस पर प्रतीति रखमा व्यर्थ है और प्रशता की सूचक है। कविवर बुधजन ने निम्न लिखित पद में इसी धर्मतस्क के महत्त्व का दिग्दर्शन कराया है। पद कर्ता के शब्दों में देखिये वे कहते हैं कि "हमें धर्म पर ही सम्यक प्रतीति और अपनत्व का भाव रखना चाहिये ।" 'धर्म विन कोई नहीं अपना ।' सुख-संपति-धन, थिर नहिं जम में जैसे रेन सपना ।।१।। है प्रास्मन् ! संसार में धर्म ही अपनी वस्तु है और इस पर ही भरोसा किया जा सकता है कि समय आने पर यह विपत्ति में सहायक होगा। जगत् की समस्त सुख-सामग्री और प्रर्थ का कुछ भी ठिकाना नहीं है । जिस प्रकार रात्रि का स्वप्न जागने पर मिथ्या निकल पाता है, उसी प्रकार जगत् का यह वैभव भी क्षरए नश्वर है और रात्रि के स्वप्न के समान न अपने में कुछ अर्थ रखता है और न इस मारमा को समय पर कुछ सहायता पहुचा सकता है । वास्तव में धर्म के बिना कोई अपना नहीं है । मागे "बुधजन" कहते हैं कि हमारा वर्तमान प्रतीत के धर्माचरण का फल है और भविष्य का निर्माण हमारे धर्माचरण पर निर्भर है। किसने स्पष्ट शब्दों में वह धर्माचरण की उपयोगिता पर प्रकापा डालते हैं : प्रागे किया सो पाया भाई याही है निरना । प्रन जो करेगा सो पावेगा, तातें धर्म करना ।। हे प्रास्मन् । यह स्पष्ट है कि पूर्व जन्म में जो कुछ तुमने धर्म का पालन किया था उसके अनुसार हो तुम्हें वर्तमान में सुख सामग्री प्राप्त हुई है और वर्तमान में जैसा धर्माचरण करोगे तदनुसार ही भविष्य में साधन-सामग्री मिलेगी इसलिये पुर्ण शांति एवं सुख प्राप्त करने के लिये केवल धर्म का ही पालन करना चाहिये 1 कविवर वुधजन लोक दृष्टि से भी धर्माचरण की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं कि: ऐसे सब संसार कहत है, धर्म किये तिरना। परपीड़ा विसना दिक सेये, नरक विर्ष परना ।। समस्त संसार इस बात का समर्थन करता है कि जीव, धर्म के द्वारा ही संसार-सागर से पार होता है इसके विपरीत जो दूसरों को कष्ट पहुंचाता है और व्यसन आदि कर सेवन करता है वह नरक में जाता है और प्रसीम दुःखों को उठाता हुमा संसार समुद्र में गोते लगाता रहता है । कविवर कहते हैं : माशुभ कर्म का उदय राजा और रंक किसी को भी नहीं छोड़ता है। देखिये :
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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