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बुधजन द्वारा निबद्ध कृतियां एवं उनका परिचय
उपयुक्त नीतियों के अतिरिक्त अन्य नीतियों भी रचना में देखी जा सकती हैं । यथा-मिश्रित नीति प्राधि । म पशंसनीय है रिन्द्र देना उसकी हाल नहीं गलती । उसमें वह पाक्ति नहीं कि उद्यमी को सुख, विद्या, प्रागु, धन प्रादि से प्रसन्न कर सके । पूर्व जन्म के कर्म इतने प्रबल हैं कि शिशु जब गर्भ में होता है तभी से उसके लिये ये वस्तुए निश्चित हो जाती हैं :
सुख दुःख विद्या पायु धन, कुल बल वित्त अधिकार । साथ गर्भ में अवतरे, देहधरी जिहि बार ॥२४६।।
१०-तत्वार्थबोध-वि० सं० १८७६
कविवर बुधजन की एक अन्य रचना तत्वार्थयोष है जो एक पद्य ग्रन्थ है। इसमें गृद्धपिच्छाचार्य के तस्वार्थं सूत्र के सूत्र विषय का पल्लवित अनुवाद दिया हुआ है । इसके अतिरिक्त इस अन्ध में निम्नलिखित विषयों का समावेश किया गया है :
(१) मंगलाचरण (२) चतुर्गति वर्णन (३) सप्ततत्त्व कथन (४) सम्यगदर्शन, ज्ञान, चारिक (५) मिथ्या दर्शन, ज्ञान, पारित्र, (६) नय, (७) निक्षेप, (८) सम्यग्तत्त्व के २५ दोष, (६) अनेकांत, (१०) जीन के नो अधिकार, (११) समुद्रघात, (१२) षद्रव्य, (१३) पल्य का प्रमाण (१४) उर्ध्वलोक-मध्यलोक-अपोलोक वर्णन, (१५) द्रव्य-गुण-पर्याय, (१६) पच्चीस क्रिया (१७) प्रष्टकर्म (१८) निर्देश (१६) स्वामित्व (२०) साधन (२१) अधिकरण (२२) विधान (२३) प्रकृति-प्रदेश-स्थितिअनुभागबंध, (२४) १४ गुणस्थान (२५) पंचपरमेष्ठी (२६) श्रावक की ग्यारह प्रतिमा (२७) मुनिधर्म कथन (२८) घ्यान का वर्णन इत्यादि ।।
इनके अतिरिक्त अन्य कई विषयों का समावेश इस ग्रन्थ में है । पं० परमा. नन्द जी शास्त्री के अनुसार इसमें सम्यक्तत्व के सभी अंगों का विशद विबेचन, पल्य, सागर व राजू के प्रमाण का वर्णन, मध्यलोक की व्याख्या, चौदह गुणस्थानों की चर्चा, घावकाचार की कथनी, १० धर्म और १२ तपों का वर्णन, शील के १८००० भेदों का वर्णन भी उपलब्ध होता है। इसमें गोमदसार जीवकांड के प्रायः सभी विषयों पर प्रकाश डाला गया है।"
इस ग्रंथ में प्रात्म-स्वातंत्र्य प्राप्त करने के मार्ग का काव्यमय घोली में सुन्दरता के साथ प्रतिपादन किया गया है। परिणामों में वैराग्य भाव जगाने के लिये कवि एक ही पद्य में कितनी मार्मिक बात कहते हैं :
१. वही २४६ २. परमानन्द शास्त्रीः अनेकान्त, वर्ष ११, किरण ६, पृ. २४६, वीर सेवा
मंदिर प्रकाशन ।