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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
निजभाई निरगुन भलो, पर गुलजुत किहि काम । आगन समितिमा राखे थाम ॥११॥ विद्यादयें कुशिव्य कों, करे सुगुरू अपकार ।
लाख लड़ावो भानजा, खोसिलेय अधिकार ॥२३५।। सामाजिक मीति
पातिव्रत पर तो प्रायः सभी नीति-कवि बल देते हैं, परन्तु पत्नी व्रत पर विशेष बल जन कवियों की विशेषता है । तदनुसार बुधजन ने भी सामाजिक यौनपवित्रता की रक्षा के लिये परस्त्री सेवन एवं वश्या सेवन का निषेध किया है व इस विषय पर अनेक भावपूर्मा दोहे लिखे हैं। कतिपय सामाजिक नीति सम्बन्धी दोहे उद्धृत हैं---
अपनी परतख देखिके, जैसा अपने दर्द । तसा ही परनारिका, दुखी होता है मर्द ।।४६१।। हीन-दीन में लीन है, सेती अंग मिलाय ।
लेती सरबस संपदा, देती रोग लगाय' ।।४७३।। प्रायिक नीति
यद्यपि बुधजन ने धन-जन्य सम्मान, तथा दारिद्र' य-जन्य अपमान का अनेक दोहों में सनिस्तार उल्लेख किया है, तथापि उन्होंने चोरी, अन्याय, जुना भादि साधनों में पत-संग्रह को बहुत बुरा कहा है। उनके मत में नीति का परित्याग नितान्त अनुचित है । आर्थिक नीति सम्बन्धी पप उदृत हैं
नीति तजे नहि सत्पुरुष, जो धन मिले करोर ।
कुलतिय बने न कंचनी, भुगते विपवा घोर ॥३१८| इतर प्राणि विषयक नीति
'प्राए सबको प्यारे होते हैं और अहिंसा जैनों का मुख्य सिद्धान्त है, इसलिये बुधजन ने मांस-भक्षण तथा आखेट का प्रबल निषेध किया है। इसके अतिरिक्त मद्यपान के त्याग के ये हेतु प्रस्तुत किये हैं फि---उसके नशे में मनुष्य गोपनीय बातें प्रकट कर देता है । सुधबुध भूल कर गलियों में गिर कुत्तों से मुख चटवाता है मद्य-निर्माण में होने वाली हिंसा के पाप का भागी होता है।"
१. बुधजन सतसई, पद्य स. १५१ । २. से ४. वही, प स १८१, १२३५, ४६१, ४७३ ५ बुधजन सतसई पास'. ३१५ ६. वही, ४५३