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________________ कविवर बुधजन : व्यक्तिव एवं कृतित्व 'शरीर, धन और स्त्री का साहचर्य ही जगत् का मूल है, संसार-बंधन का कारण है । अज्ञानी जीव इन्हें अपना इष्ट, अनुकूल एवं प्रिय मानता है ।" वे मागे सखी होने का उपाय बताते हुए कहते हैं: "हे प्राणी ! यदि तू सुखी होना चाहता है तो सुखी होने का उपाय बताता हूं उसे ध्यान पूर्वक सुन । जगत के समस्त स्त्री, पुरुष सुख्न चाहते हैं, परन्तु ये सुख की प्राप्ति का ठीक साषम नहीं जानते , २ चा फास सुश मानते हैं । परन्तु यह समझ ठीक नहीं है । धन सम्पन्न व्यक्ति प्रत्यक्ष में दुःखी देखे जाते हैं, उन्हें राजा, चोर, रोग, मोक, ग्लानि प्रादि के अनेक दुःख होते रहते हैं। वे धन की प्राप्ति हेतु नदी, पर्वत, तालाब, वन प्रादि भयानक स्थानों में जाते हैं तथा भोजन, पानी, निद्रा का भी परित्याग करते हैं । अावश्यकता पड़ने पर दूसरों के प्राणों को पीढ़ा पहुंचाते हैं । इतने कष्ट उठाने के बाद भी यदि उन्हें धन की प्राप्ति नहीं होती तो बहुत अधिक दुःख का अनुभव करते हैं। कदाचित् पुण्य योग से धन की प्राप्ति हो भी जाती है परन्तु प्रस्वस्थता के कारण उसको भोगने में असमर्थ रहते हैं । कदाचित् सम्पूर्ण साधन मिल भी गये तो भोगों में आसक्त होकर जन्म, मरण, रोग प्रादि के दुःखों को भोगना पड़ता है । भाव यह है कि मानय जीवन प्रादि से अन्त तक दुःख पूर्ण है, प्रल : जिनमत को धारण करो। इसके धारण किये बिना सुखों की प्रान्ति दुर्लभ है। इसी ग्रन्थ में धन के विषय में कवि लिखते हैं : मन के कारण भाई-भाई परस्पर में लड़ते हैं । धन की मधिक प्राप्ति न होने से सेवक स्वामी का साथ छोड़ देते हैं । धन के कारण ही चारों का भय रहता है। - - - -- १. सन धन त्रिया जगत का मूल, जीव रहें इनके अनुकूल । सुनौ अवस्था तिमको अके, कछ विरागता प्राय सबै ॥ मुषजन. तरवार्षबोध, पद्य संख्या १३, पृ. संख्या २, कन्हैयालाल गंगवाल, लश्कर प्रकाशन। सुखी हुषा पाहो जगमाहि, जल में घुत कई निस्सै नाहि । चार गति में फिरे प्रश्राम, ताको परम विविध विधान ॥ सुख चाहे नरनारी सवे, मातहि धनतें सो नहिं पाये । परतखि दुःखी लख्खे धनवान, भूप पोर न सोक गिलान ।। मी तमाग संसवन फिरे, असन पाम निशा परिहरै। परफू, पीई प्रापति लहै, जिन प्रापति तुल प्राधिका है ।। करि नहिं सके मिल जो भोग, शक्ति हीन के होय वियोग । सो भागन त भोगे भोग, वादे जन्म-मरण दुख रोग ।। बुधजन : तत्वार्थबोध, पद्य संख्या ६, १०, ११, १२, पृ००२ लश्कर प्रकाशन
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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