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समय हिन्दी कवि पर शोध प्रबन्ध लिखा होने के कारण मैंने तत्काल उसे अकादमी द्वारा प्रकाशित करने का प्रस्ताव रखा जिसका सभी ने समर्थन किया । शोध प्रबन्ध के प्रकाशन में थोडा विलम्ब भवश्य हो गया लेकिन अकादमी के प्रकाशनों का कार्यक्रम बन चुका था इसलिये उसे तत्काल हाथ में लेना संभव नहीं था। फिर भी अकादमी द्वारा शोध प्रबन्ध को नवम पुष्प के रूप में प्रकाशित करते हुए हमें प्रसन्नता है ।
अकादमी के १०वें भाग में १८वीं शताब्दि के पांच कवियों को चुना गया है 1 इनमें टीकम, नेमिचन्द, खुशालचन्द काला, किशनसिंह, एवं जोधराज गोदीका जैसे कवियों का विस्तृत परिचय एवं मूल्यांकन रहेगा । ये सभी कवि साहित्य गगन के जगमगाते सितारे हैं ।
प्रस्तुत नवम भाग के प्रकाशन में दि. जैन महासभा के अध्यक्ष माननीय श्री निर्मलकुमार जी सा. सेठी एवं श्री हुकमीचन्द जी सा सरावगी ने जो आर्थिक सहयोग देने का आश्वासन दिया है, मकादमी उसके लिये दोनों हो महानुभावों की आभारी है। सेठी सा. की अकादमी पर असीम कृपा है और वे अपने भाषणों एवं साहित्यिक चर्चा के प्रसंग में अकादमी के कार्यों की प्रशंसा करते रहते हैं ।
नये सदस्यों का स्वागत
अष्टमभाग के पश्चात् जिन महानुभावों ने अकादमी की सदस्यता स्वीकार की है उनमें श्री ब्रिजेन्द्र कुमार जी सा. जैन सर्राफ देहली एवं श्री राजेन्द्रकुमार जी ठोलिया जौहरी जयपुर के नाम विशेषतः उल्लेखनीय हैं। श्री विजेन्द्र कुमार जी देहली के लाल मन्दिर के प्रमुख पदाधिकारी हैं। वे अत्यधिक धार्मिक प्रवृत्ति एवं सरल स्वभावी हैं। समाज सेवा की बात उन्हें अपने पिताजी रघुवीरसिंह जी से प्राप्त हुई है | साहित्यिक कार्यों में आपकी विशेष रुषि रहती है ।
इसी तरह श्री राजेन्द्र कुमार जी ठोलिया जयपुर के प्रसिद्ध बन्जी टोलिया परिवार में जन्मे युवा समाज सेवी हैं । श्राप प्रत्यभिक विनम्र, मधुर भाषी एवं सरल स्वभावी हैं। प्रकादमी के नये उपाध्यक्ष के रूप में हम आप दोनों का हार्दिक अभिनन्दन करते है । अन्य सदस्यों में सर्व श्री निहालचन्द जी कासलीवाल बम्बई, कस्तूरचन्द जी सर्राफ कोटा, ज्ञानचन्द जी मंवरलाल जी सर्राफ कोटा, प्रकाशचन्द जी शान्ति लाल जी जैन सर्राफ कोटा, विजयकुमार जी पांड्या कोटा, रिखबचन्द जी जन कानपुर, मांगीलाल जी पहाड़े हैदराबाद, एवं श्री सुमेरचन्द जी पाटनी लखनऊ के नाम उल्लेखनीय है ।
श्रीमती चमेली देवी कोठिया धर्मपत्नी डा० दरबारी लाल जी कोठिया का निधन अकादमी परिवार की गहरी क्षति है । श्रीमती कोठिया अकादमी के उपाध्यक्ष पद पर थीं तथा अकादमी को साहित्यिक कार्यों के प्रति गहरी रुचि रखती थीं । आपने अकादमी को सर्व प्रथम सदस्य और फिर उपाध्यक्ष के पद की स्वीकृति
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