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कविवर वुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
जन साहित्य में मुख्यत: अहिंसा सिद्धान्त की अभिव्यक्ति हुई है। उसमें लोक-जीवन के स्वाभाविक चित्र अंबित हैं। उसमें सुन्दर प्रात्म-पीयूप-रस छमछलाता है। धर्म त्रिोष का साहित्य होते हुए भी उदारता की कमी नहीं है। मानव स्वावलंबी कैसे बने, इसका रहस्योदघाटन इसमें किया गया है । तस्व-चिंतन और जीवन-शोधन ये दो जैन साहित्य के मूलाधार हैं।
जीवन गोगा -सोन) में सारा , सम्यक ज्ञान तथा सदाचार का महत्वपूर्ण स्थान है। जैन सदाचार, अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य प्रार अपरिग्रह रूप हैं।
प्रत्येक प्रात्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व है । प्रत्येक आत्मा राग-द्वेष एवं कर्ममल से अशुद्ध है । वह पुरुषार्थं से शुद्ध हो सकती है । प्रत्येक प्रात्मा परमात्मा बनने की क्षमता रखती है । जैन दर्शन निवृत्ति प्रधान है । रत्नत्रय ही निवृत्ति मार्ग है। सात तत्त्वों की श्रद्धा ही सम्यग्दर्जन है। प्रात्मा की तीन अवस्थाएं है-बहिरास्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा । विचारों को अहिंसक बनाने के लिए अनेकान्त का प्राश्रय आवश्यक है।
हिन्दी भाषा का जो रूप गांधीजी चाहते थे, वह इन जैन कवियों की रचनाओं में उपलब्ध होता है । परन्तु साधु संप्रदाय में पले इन कवियों की भाषा संस्कृत निष्ठ थी। जैन कवियों ने अनेकों महाकाव्य भी लिखे, मुक्तक काब्य भी लिखे । उनकी मुश्तक कृतियां उत्तम काव्य की निदर्शन है।
वि. सं. १८००-१६०० तक जो भक्ति परक रचनाएं हुई, उन पर रीतिकान का प्रभाव था। उनकी भाषा में भी अलंकारों की भरमार श्री ।।
___ जैन कवियों की भाषा सरल और प्रवाहपूर्णं थी। उन्होंने अनेक नये छन्द, नई राग-रागिनियों में प्रयुक्त किये । अलंकारों के प्रयोग में वे मर्यादाशील बने रहे । भक्ति-काव्य का कोई अंश-अलंकारों के कारण अपनी स्वाभाविकता न खो राका ।
अनेक जैन कवि प्रकृति के प्रांगण में पले और वही उनका साधना क्षेत्र बना। प्रतः चे प्रकृति चित्रण भी स्वाभाविक ढंग से कर सके।
साहित्य-सर्जन की दृष्टि से उत्तर भारत में इस काल में जैनों के प्रमुख केन्द्र गुजरात, दिल्ली और जयपुर थे। इन केन्द्रों पर संस्कृति, हिन्दी, गुजराती राजस्थानी आदि भापानों में साहित्य सुजन चलता रहा किन्तु उसमें गद्य एवं पद्य के हिन्दी साहित्य की ही बहलता रही। उसकी रचना में जमपुर केन्द्र सर्वाग्रणी रहा । म भी राजस्थानी साहित्य प्रेरणा और शक्ति का साहित्य रहा है ।
___ इस काल में लगभग ५०-६० जैन कषियों एवं साहित्यकारों के नाम मिलते हैं, जिनमे निम्न लिखिन साहित्यकार उल्लेखनीय है :