SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व लिए वे लोक भाषाओं का आश्रय लेने से भी कभी नहीं चूके । यही कारण है कि उन्होंने सभी प्रान्तों की भाषाओंों को अपनी रचनाओं में समृद्ध किया है | अपभ्रंश भाषा द्रविड़ प्रान्तों और कर्नाटक को छोड़कर प्रायः सारे भारत में थोड़े बहुत हेरफेर के साथ जातीको भाषा में भी जैन कवि विशाल साहित्य का निर्माण कर गये हैं । "1 सिद्धों, जैनियों और नाथ गुरुओं ने वेद शास्त्र, जन्मगत उच्चता के विरोध में जो तीव्र व्यंग किये हैं। तीव्रता के साथ श्रागे चलकर संत कवियों ने किये । अन्य सन्तों की भाँति कविवर बुधजन ने किया, सर्वसुलभ भक्ति मार्ग का प्रचार किया। बाह्य श्रान्तरिक तन्मयता मूलक भावना को प्रश्रय देते थे। उनकी सर्वतोमुखी व्यापकता थी जिसमें बनी निर्धन, तथा ब्राह्मण से लेकर चाण्डाल तक का स्थान था के लिए समान भाव से खुला हुआ था। किसी तीर्थ सेवन ब्राह्माचार एवं लगभग इसी शैली और इसी भी बाह्य आडंबरों का खण्डन कर्मकाण्ड की अपेक्षा वे भी कवि की सबसे बड़ी विशेषता सवर्ण-असद ग्रहम्थ-विरक्त " धर्म का द्वार, स्त्री-पुरुष सभी प्राचीन परम्परा के बन्धन में न कर अपनी वैयक्तिक अनुभूति एवं स्वतन्त्र पद्धति से अपने समय की सामाजिक विकृतियों को सुधारने की चेष्टा करते रहे। उन्होंने बड़े विश्वस्त भाव से कहाकि हमें श्रात्म-स्वरूप का अन्वेषण करने के लिए श्रन्यत्र जाने की यात्रश्यकता नहीं । सत्य के श्रेष्ठतम प्रतिष्ठान हमारी आत्मा में ही विद्यमान हैं। जैसे मृगनाभि में कस्तूरी है वैसे ही प्रयत्न पूर्वक खोज करने पर वह दुर्लभ वस्तु ( श्रात्मा में ही ) स्फुरित हो जाती है । उन्होंने स्वसंवेद्य ज्ञान को प्रधानता दी । उनकी आध्यात्मिकचेतना, शास्त्रीयता से परे, जीवन के प्रति सहज, व्यापक और उदार दृष्टिकोण से स्रोत-प्रोत है । यह न तो ग्रहण की पक्षपालिनी है और न त्याग की विरोधिनी । जीवन के साधारण कार्य व्यापारों के प्रति वह एक सुसंगत, संतुलन खोजकर तत् आचरण करने पर विशेष बल देती है। उन्होंने वह भूमिका तैयार की जो जन-सामान्य के श्रात्म विकास का निर्माण करती है । प्रत्येक व्यक्ति में आध्यात्मिक तरत्र का होना उन्हें स्वीकार है। व्यक्तिगत चितन के द्वारा परम चरम सौंदर्य का साक्षात्कार होना उनकी दृष्टि से असम्भव नहीं है। ५. खड़ी बोली की परम्परा तथा विकास (आत्मा) के कविवर बुधजन ने जिस क्रू दारी भाषा ( लोक भाषा) का अपनी साहित्यिक रचनाओं में प्रयोग किया है वह हिन्दी भाषा के अत्यन्त निकट है । केवल उसके १. जैन कामता प्रसाथ हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, पृष्ठ १०, भारतीय ज्ञान पीठ प्रकाशन ।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy