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________________ युग और परिस्थितियां की अध्यात्म शैला चलती थी अर्थात् वहां प्रतिदिन एक गोष्ठी होती थी। उसमें अध्यात्म चर्चा और पटान-पाठन ही प्रमुख था। गोष्ठी में नाटक त्रय सदैव पड़े जाते थे, यह काम प्रातः और संध्या दोनों समय चलता था। सभी श्रोता तत्वज्ञान के जानकार होते थे । वुधजन भी उनमें से एक थे 1 कवि की लगन विशेष थी, प्रतः उन्हें शास्त्रों का अच्छा ज्ञान हो गया था। उस समय टीकाएं और वदनिकाएं ढूवारी हिन्दी में लिखी जाती थीं। टीका में मूलग्रंय के विचार और शब्दों का अनुवाद भर होता था। दीकाकार अपनी ओर से कुछ घटाने या बढ़ाने को स्वतन्त्र नहीं नाचनिक में मनुव: है हो ही चा, साप मिश्लेषण भी रहता था । वहां वचनिकाकार अपना मत भी स्थापित कर सकता था। ४. लोक-परम्परा लोक में प्रचलित परम्परा को लोक-परम्परा कहते हैं। लोक-साहित्य में ये परम्पराएं आज भी सुरक्षित है । लोक-प्रिय हैं । लोक-साहित्य में लोक-गीतों की प्रमुखता है । ये लोकगीत स्त्रियों को बहुत प्रिय हैं। होली, विवाह, वियोग संस्कार, बनड़ा, बाना बैठना, बड़ा विनायक, चाक पूजना, धार्मिक गीत, सती गीत, मांवरे, विदाई प्रादि अवसरों पर स्त्रियाँ लोक-परम्परागत लोका-गीत गाती रहती हैं। "लोफ भाषानों में अनेक गोतों, वीर गाथाओं, प्रेमगाथानों तथा लोकोक्तियों धादि की भी भरमार है । यह सामग्री अधिकांश में अभी तक अप्रकाशित है । लाक कथा और लोक कथानकों का साहित्य साधारण जनता के अन्तस्तर की अनुभूतियों का प्रत्यक्ष निदर्शन है।" लोक भाषा में हमारी लोक परम्परा दीर्घकाल से सुरक्षित है। सिद्ध लोगों ने उस समय लोक भाषा में कविता प्रारम्भ की। जिस समम शताब्दियों से भारत के सभी धर्म वाले किसी न किसी शास्त्रीय भाषा द्वारा अपने धर्म का प्रचार कर रहे थे और इसी कारण उनके धर्म के जानने वाले बहुत घोड़े हुमा करते थे। सिद्धों के ऐसा करने के कारण थे, वे प्राचार, धर्म-दर्शन नादि सभी विषयों में एक क्रान्तिकारी विचार रखते थे । वह सभी अच्छी-बुरी रूढ़ियों को उखाड़ फेंकना चाहते थे। "जोन विद्वानों ने लोक रुचि और लोक-साहित्य की कभी उपेक्षा नहीं की। जन-साधारण के निकट तक पहुंचने और उनमें अपने विचारों का प्रचार करने के १. राहुल सांकृत्यायन : हिन्दी साहित्य का वृहद इतिहास, घोडा भाग पृ. ५, यि. सं. २०१७ ।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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