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________________ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व उनका अनुज माधोसिंह जयपुर का शासक बना, इन्हीं की परंपरा में सवाई जयसिंह (तृतीय) हुए । कविवर बुधजन इन्हीं के समय में हुए थे, क्योंकि कविवर बुधजन का समय वि. सं. १८३० से १८६५ तक निश्चित होता है। सवाई जयसिंह (तृतीय) का समय भी वि. संवत् १८७५ से १८९२ तक का है । = यद्यपि वह समय राजनैतिक अस्थिरता का था। जैन विद्वानों की विशेष रुचि धार्मिक विचारों से परिपूर्ण थी, तथापि राजनीति में भी जनों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। बंगाल में मुर्शिदाबाद के जगत सेठ, दिल्ली के शाही खजांची ह्रसुखराय और सुगनचन्द, भरतपुर के नथमल बिलाला आदि उस काल के प्रसिद्ध व्यक्तियों में से थे । राजपूत राज्यों की राजनीति में भी उस काल के जैनों ने महत्वपूर्ण भाग लिया था। बुन्देलखण्ड में देवगढ़ का शासक जैन था जिससे सिंधिया का युद्ध हुआ था । "जयपुर में मिर्जा राजा जयसिंह के समय में बल्लूशाह जैनी एक उच्च पद पर नियुक्त था, उसका पुत्र विमलदास राजा रामसिंह और विशन सिंह के समय में दीवान था, वह वीर योद्धा भी था, इसका पुत्र रामचन्द्र छाबड़ा, महाराजा सवाई जयसिंह ( १७०१-४३ ) का दाहिना हाथ एवं प्रधान दीवान था, वह भी वीर योना एवं कुमाल सेनानी था। तदुपरान्त राव कृपाराम, शिवजीलाल, अमरचन्द प्रादि प्रसिद्ध दीवान जयपुर राज्य में हुए। दीवान अमरचन्द के सम्बन्ध में डॉ. ज्योतिप्रसाद का मत है कि दीवान श्रमरचन्द विद्वानों का भारी आश्रयदाता था, निर्धन छात्रों को छात्रवृत्ति देता था । स्वयं भी बड़ा विद्वान् और धर्मारमा था । उसने अनेक जन मन्दिरों का निर्माण एवं ग्रन्थों की रचना भी कराई थी। राजा का सारा दोष अपने ऊपर लेकर और अपने प्राणों की बलि देकर अंग्रेजों के कोप से उसने जयपुर राज्य की रक्षा की थी। इस काल में जयपुर राज्य के जैन साहित्यकारों ने विशेषरूप से हिन्दी खड़ी बोली के गद्य का भूतपूर्वं एवं महत्त्वपूर्ण विकास किया । जयपुर के विद्वानों का देश के अन्य प्रदेशों के जैन विद्वानों के साथ भी बराबर संपर्क रहता था। ग्रंथों की प्रतिलिपियां करने का एक विशाल कार्यालय भी इस काल में वहां स्थापित हुना, जहां से ग्रन्थ भेजे जाते थे । मनेक जैन मंदिरों के अतिरिक्त जैन मूर्तिकला के निर्माण का भी केन्द्र जयपुर बता । केवल जयपुर नगर में ही उस काल में लगभग दस बारह हजार जैनी थे । "2 कविवर बुधजन के समय में जयपुर में लगभग १५० जैन चैत्यालय थे । उनमें एक शांति जिनेश का मन्दिर बड़े मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध था। वहां तेरापंथ १. २. शर्मा पं. हनुमान प्रसाद, हितैषी पत्रिका, पृ० ८ जयपुर प्रकाशन । जैन, डॉ. ज्योति प्रसाद : भारतीय इतिहास एक दृष्टि, द्वितीय संस्करण पृष्ठ ५६३ ।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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