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________________ युग और परिस्थितियां कालान्तर में उसमें शिथिलता प्रा गई । दिगम्बर-श्वेताम्बर प्रतिमाओं में कोई भेद न था । प्राय: दोनों ही नगा प्रतिमानों को पूजते थे, परन्तु भविष्य में किसी प्रकार का झगड़ा न हो इस पृष्टि से श्वेताम्बर संघ ने प्रतिमानों के पाद-मूल में वस्त्र का चिन्ह बना दिया और कालान्तर में मूर्तियों को प्रांस, अंगी, मुकुट आदि द्वारा अलंकृत किया जाने लगा जो अाज तक प्रचलित है।"] "दिगम्बर सम्प्रदाय में भी शिथिलाचार प्रविष्ट हुना। मठाधीश भट्टारकों का प्रभुव बढ़ने लगा । वे उद्धिष्ट भोजन करते थे । एक ही स्थान पर बहुत समय तक रहते थे, तेल मालिश करते थे, मंत्र-तंत्र प्रादि विद्याओं का उपयोग करते थे ।" समाज में शिधिलाबार बढ़ रहा था। विद्वानों और साधुनों के बढ़ते शिथिलाचार को देखकर ही पं. पाशाघरजी को लिखना पड़ा कि : "इस काल के भ्रष्टाचरणी पंडितों ने एवं मठाधिपति साधुनों ने (भट्टारकों म) पवित्र जैन शासन को मलिन कर दिया है ।''3 यह सामाजिक विकृति न केवल जैन सम्प्रदाय में ही उत्पन्न हुई थी, अपितु संपूर्ण भारतीय समाज को भी विकृप्त कर रही थी। राजस्थान के इतिहास के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि "उस समय औरंगजेब का शासन काल था, जिसमें मुगल सत्ता उतार पर थी। मुगलों की पिछली संतान बहुत कुछ नष्ट हो चुकी थी । शिक्षा की कमी और असभ्य समाज के कारण उनका पतन हो गया था। असंयम तथा मद्यपान ने उन्हें अवनति के गर्त में फेंक दिया था । देश में स्थित प्रत्येक वर्ग के लोग, घोर अंधकार में पड़े हुए थे । निर्धन और धनवान प्रत्येक के जीवन का प्रत्येक कार्य ज्योतिष के अनुसार ही होता था।" उस समय राजस्थान के शासक भी निष्क्रिय थे। जयपुर के राजा सवाई जयसिंह ने अवश्य मुगलों के इस विघटन का लाभ उठाया, उन्होंने हिन्दू-प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयत्न किया । परन्तु सवाई जयसिंह के पुत्र ईश्वरसिंह के शासनारूढ़ होते ही (१७४४–१७५०) विघटन प्रारम्भ हो गया । उसके पश्चात् १. भारिल्ल गे. हुकमचन्द शास्त्रो : पं. टोडरमल व्यक्तित्व एवं कृतित्व, पृ. ६ । २. प्रेमी नाथूरामजी जैन साहित्य का इतिहास, पृ. ४६६ भारतीय ज्ञान पीठ प्रकाशन । ३. पंसितंभ्रष्ट चारित्रः बहरैश्चतपोधनः । शासनं जिनचंद्रस्य, निर्मलमलिनी तिम् प्रनगार-धर्मामृतः अध्याय २/९६ टीका । पं. माशापर-प्रज्ञा पुस्तक माला का १६ वां पुष्प प्रका. मोहनलाल काध्यतीर्थ, सिवनी, सी. पी. । ४. डॉ. विश्वेश्वर प्रसार डी. लिद : भारतवर्ष का इतिहास, पृ. २२२
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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