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कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
जयपुर के राजघरानों के इतिहास पर एक विहंगम दृष्टि डालने पर सष्ट हो जाता है कि इन नरेशों ने जयपुर के इतिहास को बनाने में अभूतपूर्व सहयोग प्रदान किया था । वि. सं. १६७८ से १६७६ तक होने वाले जयपुर के राजवंश की तालिका इस प्रकार है :
६
क्र०
१.
२.
४.
५.
६.
19.
८.
१.
१०.
११.
१२.
शासन फाल
१६७८ से १७२४ तक
१७२५ से १७४६ तक १७४७ से १७५६ तक
१७५७ से १८०० तक
१५०१ से १८०७ तक
१८०८ से १८२४ तक
१८२५ से १८३३ तक
१८३४ से १८६० तक
१८६१ से १८७५ तक
१८७६ से १८६२ तक
१५६३ से १६३७ तक
१६३८ से १६७६ तक
शासक
मिर्जा राजा जयसिंह- प्रथम
महाराजा रामसह-प्रथम महाराजा विष्णुसिंहजी सवाई जयसिंह द्वितीय साई ईश्वरसिंहजी
सवाई माधोसिंह जी
महाराजा पृथ्वीसिंह जी महाराजा प्रतापसिंह जी
महाराजा जगतसिंह जी महाराजा जयसिंहजी (तृतीय)
महाराजा रामसिंहजी (द्वितीय)
महाराजा माधोसिंहजी (द्वितीय)
कविवर बुधजन १६वीं शताब्दी के कवि थे । उन्होंने प्रपने जीवन काल में जयपुर में दो शासकों का शासन काल देखा था, यह कवि की रचनाओं के उल्लेख से स्पष्ट हो जाता है । कवि ने "बुधजन सलाई” की रचना वि. सं. १८७६ में की थी। कवि की अन्तिम रचना व मानपुराण सूचनिका है। इसका रचनाकाल वि. सं. १८६५ है । इस काल में महाराजा रामसिंहजी (द्वितीय) कुछ काल तक जयपुर के शासक रहे । दोनों ही शासकों का जयपुर के निर्माण में अभूतपूर्व योगदान रहा है । कविवर ने उक्त दोनों ही शासकों का अपनी रचनाओं में सादर उल्लेख किया है । जिस प्रकार जयपुर नगर को बसाने का सुयश महाराजा सवाई जयसिंह को है, उसी प्रकार जयपुर की सजावट तथा प्रजाहित के कार्यों की वृद्धि करने वाले महाराजा सवाई रामसिंह जी (द्वितीय) को दिया जा सकता है ।
३. तत्कालीन सामाजिक तथा राजनैतिक परिस्थितियाँ
"बुधजन " १६ वीं शती के कवि थे। उस काल की सामाजिक परिस्थितियां भच्छी नहीं थीं । समाजन्बाह्य ग्राहंबरों और पाखण्डो से विकृत हो रहा था । जैन समाज दिगंबर - श्वेताम्बर ऐसे दो संप्रदायों में विभक्त था । श्वेताम्बर संप्रदाय के सात्रों को लज्जा निवारण के लिए बहुत सादा वस्त्र रखने की छूट दी थी।