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________________ बुधजन सतसई काना ठूंठा पांगुला, वृद्ध कुबरा भन्ध बेवारिस पालन करें, भूपति रचि परबंध ||१३५|| कुपन ऐसा स्वामी सेवते कदे न होय हंकारी, व्यसनी, हठी, प्रारसवान भृत्य न ऐसा राखिये, करें नृप चाले साही चलन, प्रजा व जा पथ जा गजराज त, जात सूर सुधीर पराक्रमी, सब वाहन असवार । जुद्धचतुर साहसि मधुर, सेनाधीस उदार ।। १३६ ।। निरलोभी सांची सुवर, निरानसी मति धीर । हुकमी उदमी चौकसी, भंडारी गंभीर ॥ १४० ॥ निरलोभी सांची निहर, सुध हिसाबकरतार स्वामिकामतिर प्रालसी, नौसदी हितकार ।। १४१ ।। दरस परस पूछें करें, निरन रोग रूपाय | पथ्यापथमैं निपुन चिर, वेद चतुर सुखदाय ॥। १४२ ।। ज़ुक्त सौच पाचक मधुर, देश काल वय जोग । सूपकार भोजनश्वतुर, बोलै सत्य मनोग ।। १४३ ।। मूढ़ दरिद्री आयु लघु, व्यसनी लुब्ध कर नापित नहि दीजिये, जाका मन मगरूर ॥ १४४ ॥ सीख सरलको दीजिये, विकट मिले दुःख होय | चये सीख कपिको दई दियों घोंसलो खोय ॥ १४५ ॥ अपनी पख नहीं तोरये, रवि रहिये करि पाहि । कर्ग तंदुल सुस सहित, तूस बिन ऊगें नाहि ।। १४६ ।। प्रति लोलुप प्राक्तके विपदा नाहीं दूर मीन मरे कंटक फंसे, दौरि मांस लखि कूर १४७॥ भावत उठी भाबर करं, बोलें मीठं मन । जातें हिलमिल बैठना, जिस पायें प्रति चैन ।। १४८ ।। निहाल ।। १३६ ।। अज्ञान | मनोरथहान ॥ १३७॥ दा चाल | जूथ गजवाल ।। १३६ ।। भला बुरा लखिये नहीं, भाये अपने द्वार | मधुर बोल जस लीजिये, नातर अजस तयार ॥१४६॥ सेय जती के भूपति व िव के पुरवीज । या बिन और परकार जीवतं वर मीच ।। १५०॥ १६६
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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