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तुलनात्मक अध्ययन
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"समधे हिन्दी साहित्य में सुरदास का बाल वर्णन प्रसिद्ध है । उन्होंने बालक कृष्ण की अनेक मनोदशात्रों का चित्रण किया है । सच यह है कि वे इस क्षेत्र में -=ोले नहीं थे । मध्यकालीन जैन हिन्दी कवियों ने तीर्थंकरों के गर्भ और जन्म से सम्बन्धित अनेक मनोरम चित्रों का मकन किया है । इन अवसरों पर होने वाले विविध उत्सवों की छटा को मूरदास डू भी न सके हैं । यह जन कवियों की अपनी शैली थी, जो उन्हें पूर्व परम्परा से ही उपलब्ध हुई थी। "मादीवरफागु" में मादीश्वर प्रभु का जन्मोत्सव सम्बन्धी एक ष्टान्त देखिये :--
"हे. रतन पारित गति मोटाउ मोटाउ लीघउ कुंभ । क्षीर समुद्र शंकू पूरीय पूरीय प्राणीय प्रभ ।। माहे द्रुमि मि तब लीय बज्जइ प्रमि प्रमि मछलनाद । टणण टणण टंकारब, झिणि झिरिण झल्लर साद 1।"
"भादीश्वरफागु' का एक और सुन्दर एष्टान्त प्रस्तुत है। इसमें कवि ने बालक के निरन्तर बढ़ने का वर्णन किया है । "मादीश्वर दिन-दिन इस भांति बढ़ रहे हैं, जैसे दितीया का चन्द्र प्रतिदिन विकसित होता जाता है। उसमें शनैः शन: ऋद्धि, बुद्धि और पवित्रता प्रस्फुटित होती जा रही है, जैसे समाधिलता पर कुन्द के फूल खिल रहे हों।"
__ 'सूर स हिन्दी भक्ति युग के सशक्त कवि हैं। उन्होंने भाव-विभोर होकर सगुण ब्रह्म के गीत गाये ।' 'सूरसागर' इसका प्रतीक है। उसमें सूर के निमित सहनों पदों का संकलन है । ये पद गेय हैं। राग रागिनियों से समन्वित हैं। उनका बाह्य सुन्दर है, तो अन्तः सहज और पावन 1 सब कुछ भक्तिमय है।"
इसी युग में जैन कवियों ने भक्ति रस पूर्ण भधिकाधिक पदकाव्य का निर्माण किया । वह सब भक्तयात्मक है। उसमें भी प्रसाद और लालित्य है । विविध रागरागिनियों का नर्तन वहां भी है । दोनों में बहुत कुछ साम्य है । कहीं-कहीं तो तत्
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१ डा. प्रेमसागर जैनः हिन्दी जन भक्ति काव्य मोर कवि, पृ० संख्या ७५
भारतीय मानपीठ प्रकाशन । २. मट्टारक शानभूषणः मावीश्वरफागु पद ० २६२, पामेर शास्त्र भंगर की
हस्तलिखित प्रति । माहं विन दिन बालक मापा, वीजतरण, जिन चन्द । ऋद्धि विबुद्धि विशुदि समाधिलता कुल २ ॥२॥ भट्टारक शामभूषणः मावीश्वरफागुः, मामेर शास्त्र भंडार की हस्तलिखित
प्रति । ४, अनेकान्स मासिक पत्रिका, वर्ष १६६६, मकर, पृष्ठ ३५