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________________ १६० तथा— जैसे कि एवं तथा कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व तादिन सेरे तन तरुवर के, सर्वपात भरि जे हैं ॥१॥ घर के कहें वेगि ही काढ़ो, भूतभये कोई से है गर जा प्रीतम सौ प्रीति घनेरी, सोऊ देखि डरे है ||३|| रे मन जन्म अकारथ जात ॥ बिछुरे मिलन बहुरि कब है, ज्यों तरुवर के पात ॥१७ रसना दूरी बात ||२॥ त्रिपात कफ कंठ विरोधी P प्रान लिये जमजात मूढमति देखत जननी तात ॥ ३॥ उपरोक्त सूर के पदों के साथ 'बुषजन' के कतिपय पद तुलना योग्य है । P रेमन मूरख बावरे, मति दील न लाये ॥ जय रे श्री अरहंत कौं, यो मौसर जाये || नर भवपाना कठिन है, यो सुरपरि चाहे || को जाने मति काल की, यो अचानक आये ॥ छूट गये श्रम छूटते, जो झुटा चावे ॥ सब छूटे या जाल तें, यो आगम गावै ॥ भोग रोग को करत है, इनकों मत सार्व ॥ ममता तजि समता हो, 'बुधजन' सुख पार्द ॥ क्यों रे मन तिरपत नहि होय ॥ अनादि काल का विषयन राच्या, अपना सरबस खोय ।। नेषु चाखि के फिर न बाहुडे, अधिका लपटे जोय ।। ज्यों ज्यों भोग मिले त्यों तृष्णा, अधिको अधिको होय || मन रे तेने जन्म अकारथ खोयो || तू डोलत नित जगत बंध में ले विषयन रस लूट्यो । इस प्रकार कविवर बुधजन ने कविवर सूरदास के समान श्राशा तृष्णा की खूब निंदा की है। वस्तुत भाषा इतनी प्रचंड अग्नि है कि इसमें जीवन का सर्वस्व स्वाहा हो जाता है | आशा नाम की सांकल से बंधा हुआ जीव निरंतर भागता फिरता है और इस श्रृंखला से छूटा हुआ जीव शान्त होकर बैठ जाता है। इस आश्चर्य को "बुधजन" ने अपने पदों में व्यक्त किया है उन्होंने मन को विविध Error का भी सुरक्षा की भांति सूक्ष्म विवेचन किया है ।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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