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तुलनात्मक अध्ययन
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तुलनात्मक-अध्ययन १ विद्यापति पहले कवि थे और बाद में भक्त ।
बुधजन भी पहले कधि थे और बाद में भक्त तथा दार्शनिक । २ विद्यापति ने लोकभाषा मैथिली को काव्य का माध्यम बनाया ।
बुधजन ने भी लोकभाषा वारी को काग्य का माध्यम बनाया । ३ विद्यापति की रचनाओं में उनका व्यक्तित्व स्पष्ट झलकता है।
बुधजन की रचनामों में भी उनके व्यक्तित्व की स्पष्ट छाप है। ४ निधापति में भक्त कवियों की भांति आत्म-निवेदन की भावना थी।
बुधजन में भी भक्त कवियों की भांति प्रात्म-निवेदन की भावना थी । ५. विद्यापति ने अनेक रचनाओं के अतिरिक्त अनेक पदों की रचना की। ये पद ही कवि की अक्षय-कीति के प्राधार है । बुधजन ने भी अनेक रचनागों के अतिरिक्त अनेक पदों की रचना की।
ये पक्ष हो कवि को अक्षय-कीति के प्राधार हैं। ६ विद्यापति में प्रात्मानुभूति का प्रकाशन, स्व-संवेदन-गम्म, भाव-भूमि पर
लक्षित होता है। बुधजन में भी प्रात्मानुभूति का प्रकाशन, स्व-संवेदन-गम्य, भाव-भूमि पर
लक्षित होता है। ७ विद्यापति की भाषा में तरलता, सरलता भार माधुर्य पूर्ण रूप से लक्षित होता है। बुधजन की भाषा में भी तरलता, सरलता और माधुर्य पूर्ण रूप से लक्षित होता है।
५ सूरदास और बुधजन हिन्दी भाषा में कुछ रचनाएं संगीत प्रधान हैं । कबीर, मीरा, सूरदास, तुलसीदास प्रादि प्रमुख भक्त कवियों ने भक्ति-परक अनेक पद लिखे हैं । इन्हें वे स्वर्ग विभिन्न राग-रागिनियों में गा-गाकर सुनाया करते थे । इनके पदों का हिन्दी साहित्य में अत्यधिक प्रचार हुआ ।
इस प्रकार के पद जैन कवियों ने भी पर्याप्त मात्रा में रचे हैं। शास्त्रप्रवचन के बाद इन पदों को जैन मंदिरों में प्रतिदिन गाने की प्रथा है। जैन कवि धानतराय, भूधरदास, दौलतराम, महाचंद, भागचन्द, बुधजन प्रादि कवियों के पद