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________________ १५८ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व अनेक जैन व्यक्तियों को आज भी कंठस्थ हैं । कवि बुधजन के पद राजस्थान में सर्वाधिक लोकप्रिय रहे । पद रतगिता वाले जैन धर्मानुयायी होगा इतर धर्मानुयायी, दोनों की पद-रचना में मौलिक अन्तर नहीं है । जो थोड़ा बहुत अन्तर दिखाई देता है, वह बाह्य जगत् के प्रभाव का परिणाम है। हिन्दी साहित्य में गीत और पद रचयिताओं में निर्गुणसंत कबीर, रविदास, दादू, मलूकदास यादि के नाम उल्लेखनीय हैं। इसी प्रकार सगुण संप्रधाम में सूर, तुलसी, मीरा प्रादि भक्त कवियों के नाम उल्लेखनीय हैं । इन संत और भक्तों ने अनेक गीत और पद रचकर हिन्दी साहित्य को परिपुष्ट किया। निए संतों के तात्विक सिद्धान्त तथा जैनों के शुद्धात्म बाद में पर्याप्त साम्य है । ने अवतार-वाद का खंडन नहीं हो सकता है । सन्त कबीर ने कहा है— सबके हृदय में परमात्मा का निवास है । उसे बाहर न ढूंढकर भीतर ही ढूंढना चाहिये। आत्मा ही परमात्मा है। दोनों में एकत्व भाव है । प्रत्येक जीव परमात्मा है | निर्गुण संतों किया । भौतिक शरीर को दृष्टि से कोई भी व्यक्ति ईश्वर आत्मा की दृष्टि से सभी श्रात्माएं ब्रह्म हैं । श्रतएव संतों के मत में जन्म मरण से रहित परब्रह्म ही परमात्मा है। उस पर ब्रह्म का नाम स्मरण, प्रेम और भक्ति करने से कल्याण होता है । प्रायः सभी सन्त कवियों ने इसी श्राध्यात्मिक दृष्टिकोण से पद रखना की । इनके पदों की जैन पदों के साथ तुलना की जा सकती है । सगुण भक्ति धारा के कवियों के पदों के साथ भी जैन कवियों के पदों की तुलना की जा सकती है । प्रस्तुत लेख में सगुण भक्ति धारा के प्रसिद्ध कवि सूरदास के पदों के साथ बुधजन के पदों की तुलना की जा रही है । उपासना के लिये उपास्य के विशिष्ट व्यक्तित्व की प्रावश्यकता समझ सगुण भक्ति का प्राविर्भाव हुआ । सगुण उपासकों में कृष्ण भक्ति शाखा धौर राम भक्ति शाखा में श्रेष्ठ कलाकार हुए, जिन्होंने पद और गीतों की रचनाकर हिन्दी के साहित्य भंडार की वृद्धि की। महाकवि सूरदास ने पद-साहित्य में नवीन उदभावनाएं – कोमल कल्पनाएं पौर विदग्धता पूर्ण व्यंजनाएं की। वस्तृतः सूर भाव जगत् के सम्राट् माने गये है । हृदय की जितनी याह सूरदास ने ली, उतनी शायद ही अन्य कवि ने ली हो। सूरदास के पदों में पर्याप्त मौलिकता है। सूरदास की कृतियों में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों ही पक्ष परिपुष्ट हुए हैं । जिस प्रकार सूरदास ने गौरी, सारंग, आसावरी, सोरठ, भैरवी, घनाभी, ध्रुव, विलावल मलार, जैतिश्री, विराग, भोरी, सोहनी, कानूरा, केदारा, मन आदि-राग-रागिनियों में पदों की रचना की है, उसी प्रकार बुधजन ने भी प्रभाती, वित्रायल, कनड़ी, रामवली श्रलहिया, आसावरी, जगिया, झांझ, टोड़ी, सारंग, पूरी गौड़ी, काफी कनड़ी, ईमन, भोरी, संभाव, हिंग, गारो, कान्हो, विला
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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