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________________ कम्विर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ही समय में उत्पाद व्यय ध्रौव्य रूप है। ५-पर उपाधि तिरपेक्ष शव पर्यायाथिक मय-जैसे संसारी जीवों की पर्याय सिद्ध भगवान के समान शुद्ध है । ६-पर उपाधि सापेक्ष प्रशुश पर्यायाथिक नय' । जैसे-संसारी जीवों के जन्म मरण होते हैं । संकल्प मात्र से पदार्थ को जानने वाला नंगम नय है । उसके तीन भेद है-- १-भूत, २-भावी, ३-पतमान । भूतकाल में वर्तमान का भारोपण करना मत नैगम नय है। जैसे दीपावली के दिन कहना कि-माज भगवान महावीर मुवत हुए हैं । भविष्य का वर्तमान में पारोपण करना भावी नैगम नय है । जैसे अरहंत भगवान को सिद्ध कहना । प्रारंभ किये हुए कार्य को सम्पन्न हुया काहना दर्तमान नैगम मय है। जैसे-दूल्हे में अग्नि जलाते समय यों कहना कि मैं चावल बना रहा हूँ । पदार्थों को संग्रहीत (इकट्ठे) रूप से जानने वाला संग्रहनय है। इसके दो भेद हैं-सामान्य संग्रह- से समस्त पदार्थ द्रश्यत्व की प्रपेक्षा समान हैं। परस्पर प्रविरोधी हैं । २-विशेष संग्रह-जैसे समस्त जीव जीवत्व की अपेक्षा समान हैं । परस्पर विरोधी है। संग्रह तय के द्वारा जाने गये विषय को विधि पूर्वक भेद करके जानना व्यवहार नय है । इसके दो भेद हैं-सामान्य व्यवहार जैसे पदार्थ दो प्रकार के हैं १ जीव २ अजीब । विशेष व्यवहार नय-जैसे जीव दो प्रकार के हैं । १ संसारी, २ मुक्त । ___ वर्तमान काल को ग्रहण करने वाला ऋजुसूत्र नय है । इसके भी दो भेद हैं। १ सूक्ष्म ऋजु सूत्र । जैसे पर्याय एक समययती है । २ स्थूस ऋजु सूत्र । जैसे–मनुष्य प्रादि पर्याय को जन्म से मरण तक प्रायु भर जानना । संख्या, लिंग मादि का व्यभिचार दूर करके शब्द के द्वारा पदार्थ को ग्रहण करना । जैसे-अभिन्न लिंग बाची दार (पु०) भार्या (स्त्री०) कला (10) प्राब्दों के द्वारा स्थी का ग्रहण होना । एक शब्द के अनेक अर्थ होने पर भी किसी प्रसिद्ध एक रूढ़े अर्थ को ही शब्द द्वारा ग्रहण करना । जैसे-गो शब्द के पृथ्वी वाणी, कटाक्ष, किरण, गाय प्रादि अनेक अर्थ है फिर भी गो शब्द को ही जानना ।। शब्द की व्युत्पत्ति के अनुसार उसी क्रिया में परिणत पदार्थ को उस शब्द द्वारा ग्रहण करना एवंमूत नय है। जैसे गति इति गो (जो चलती हो सो गाय है) इस व्युत्पत्ति के अनुसार चलते समय ही गाय को गो पाद से जानना एवंभूत नय है । नय की शाखा को उपनय कहते हैं। उपनय के ३ भेद हैं-१ सद्भूत व्यवहारनय २ ससद्भूत व्यवहारनय ३ उपचरित प्रसदभूत व्यवहारनय । __ सद्भूत व्यबहारनय के दो भेद हैं-१ शुद्ध सद्भुत व्यबहार नय-जो शुद्ध गुण गुली, शुद्ध पर्याय पर्यायो का भेद कथन करे जैसे सिद्धों के केवल ज्ञान दर्शन प्रादि गुण हैं ।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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