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तुलनात्मक अध्ययन
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२-अशुद्ध सद्भूत व्यवहारनय जो अशुद्ध गुण गुणी तथा श्रशुद्ध पर्याय पर्यायी का भेद बन करे – जैसे संसारी श्रात्मा की मनुष्य आदि पर्याय है ।
श्रसद्भूत व्यवहार नय के ३ भेद है- १ बजाति श्रसद्भूत व्यवहारनयपरमाणु बहुदेशी है । २ विजाति पर जैसे प्रतिज्ञान मूर्तिक पदार्थ से उत्पन्न होता है ऐसा कहना । ३ स्वजाति विजाति असदभूत व्यवहारनय जैसे ज्ञ ेय (ज्ञान के विषयभूत ) जीव प्रजोष में ज्ञान है क्योंकि वह ज्ञान का विषय है ऐसा कहना |
उपचरित प्रसद्भूत व्यवहारनय के भी ३ भेद है । १ स्वजाति उपचरित प्रसद्भूत व्यवहार - जैसे पुत्र, स्त्रीश्रादि मेरे हैं । २ विजाति उपचरित प्रसभूत व्यवहारनय-- जैसे मकान, वस्त्र आदि पदार्थ मेरे हैं । ३ स्वजाति विजाति उप-चरित प्रसद्भूत व्यवहार--जैसे नगर देश मेरा है। नगर में रहने वाले मनुष्य स्वजाति ( चेतन ) हैं । मकान वस्त्र प्रावि विजाति ( प्रचेतन ) हैं |
नय के दो भेद और भी किये गये हैं- १ निश्चय २ व्यवहार । जो प्रभेदोपचार से पदार्थं को जानता है वह निश्चयतय है— जैसे श्रात्मा शुद्ध, बुद्ध, निरंजन है । जो मेदोपचार से पदार्थ को जानता है वह व्यवहारमय है जैसे जीव के ज्ञान आदि गुण हैं |
प्रकारान्तर से भी कवि ने इन दोनों नयों का स्वरूप बताया है ।
जो पदार्थ के शुद्ध प्रदेश का प्रतिपादन करता है वह निश्चय नय है, जैसे जो अपने चेतन प्राण से सदा जीवित रहता है वह जीव है । जो पदार्थ के मिश्रित रूप का प्रतिपादन करता है वह व्यवहारनव है। जैसे- जिसमें इन्द्रिय ५, बल ३, प्रायु और श्वासोच्छवास ये यथायोग्य १० प्राण पाये जाते हैं, या जो इन भागों से जीता है वह जीब है ।
वस्तुतः नय आंशिक ज्ञान रूप है अतः वे सभी सत्य होते हैं जबकि वे अन्य नयों की अपेक्षा रखते हैं। यदि वे अन्य नयों की अपेक्षा न रखें तो वे मिथ्या कहलाते हैं । कहा भी है " सापेक्ष्य नय सत्म होते हैं और निरपेक्ष नय मिथ्या होते हैं
प्रयोजन दोनों नयों का प्रयोजन आत्मा को जानने का है जैसे शरीर में प्रोत्र, नाक, कान दो-दो हैं पर जिल्हा जिससे स्वाद लेते हैं बहु एक ही है। आत्मानुभव के समय तत्वों का स्वाद लेने में दोनों नयों की अपेक्षा नहीं है। एक नव वस्तु स्वरूप को नहीं बताता | निश्चयन केवल एक नय है और व्यवहार नय भी एक नम है यतः किसी भी नय के प्रति पक्षपात नहीं करना चाहिए । नय छोड़ना नहीं पड़ते, छूट जाते हैं । अतः नयों के विषय में पक्षपात करना या उन्हें विवाद का विषय बनाना उचित नहीं ।
सप्ततत्व एवं षद्रव्य