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शिल्प सम्बन्धी विश्लेषण
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६ उपसर्ग
ऐसे अधिकारी शब्द या शब्दांश जो मूल शब्द के प्रादि या पूर्व में जुड़कर उनका अर्थ परिवर्तन कर देते हैं, उपसर्ग कहलाते हैं। जैसे कर्म पाब्द के प्रागे सु जोड़ देने से 'सुकर्म' शब्द उपसर्ग से बना है जो, 'कर्म' शब्द का अर्थ बदल देता है । ७. समास
भाषा रचना में शब्द तथा शब्दांशों का योग किसी न किसी रूप में देखने को मिलता है। दो या दो से अधिक माब्दों के योग को समास कहा जाता है । जिस प्रकार शब्द एक इकाई है, उसी प्रकार एक इकाई के रूप में जब समस्त पद का प्रयोग किया जाता है, तब वह समास कहलाता है । समास एक प्रकार से शब्दों का संक्षेपीकरण करने हेतु प्रयुक्त होता है । समास का अर्थ ही संक्षेप है। हिन्दी की समास रचना पूर्णतः संस्कृत का अनुसरण नहीं करती । यही कारण है कि हिन्दी में न तो लम्बे समास मिलते हैं पोर न बन सकते हैं । ८-६ पूर्व सर्ग-परसगं
हिन्दी में संज्ञा शब्दों के रूप मिलते हैं जो संघटना के अनुसार निश्चित होते हैं । परसर्ग के पूर्व । लड़के । तथा अन्य लगभग सभी स्थानों पर । लड़का । प्रयुक्त होता है। कुछ परसर्ग सीधे संज्ञा शब्दों के पश्चाद प्रयुक्त होते हैं। अधिकतर परसों की स्थिति कारक की है। जहां पर वे भिन्न स्थिति में लक्षित होते हैं वहां वे ध्याकरणात्मक शब्द हैं। १०. ध्वनि-अर्थ
पहले कहा जा चुका है कि ध्वनियां सार्थक होती हैं । समाज में भाषा का महत्त्व केवल प्रर्थ के कारण है । ध्वनियों के माध्यम से ही प्राणीमात्र भाव-प्रेषण करता है । ध्वनियों का सीधा सम्बन्ध अर्थतत्व से है । मदि वक्ता भाषा के ध्वनि संयोगों के रूप और अर्थ सादृश्य पर प्रबलंबित न रहे तो एक क्षण से दुसरे क्षण में भाव-प्रेषण प्रसंभव हो जायगा ।
इसलिये भाषा-जगत में केवल श्रोत्र-ग्राह्य ध्वनियों का प्ली विचार किया जाता है, जो भाषण ध्वनियों के अनुक्रम में अर्थ से सम्बद्ध होती हैं। ध्वनि और प्रयं सदा संश्लिष्ट रूप में रहते हैं, इसलिये भाषा में परिवर्तन इन्हीं दो रूपों में होता है 10
१. राबर्ट ए. हाल० : इंट्रोडक्टरी लिपिष्टिक्स, पृ० २२८ । २. ना. देवेन्द्रकुमार शास्त्री : भाषा शास्त्र तथा हिन्धी भाषा की रूपरेखा,
विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी, पृ० १६७ ।